Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 314
________________ परी० 24911 ढाल सातमी. बिंदलीनी देशी. रिखजी रीस न कीजे, क्रोधे करी संजम बीजे हो | नारी मति निरखोजी ॥ हुं नवि बोलुं मरखा, प्रत्यक्ष देखाडुं परीक्षा हो ॥ ना० ॥ १ ॥ जो कुमी थइ रंग, देवो तुज एवो दंग हो ॥ ना० ॥ मुंगी मस्तक खर चामी, तुजने मूकीशुं कहामी हो ॥ ना० ॥ २ ॥ जो हुं थाउं साची, तुमे जैन धरमे रहो राची हो ॥ ना० ॥ एम मांहो मांहे जाखी, पामोशी राख्या साखी हो ॥ ना० ॥ ३ ॥ जबकाव्या ते मोगा, मिंडलना करी प्रयोगा हो ॥ ना० ॥ खंग चरमना जीणा, देखामी कीधा दीणा हो ॥ ना० ॥ ४ ॥ मठ पोताने श्राव्यो, बुधदास शेठ तेमाव्यो हो ॥ ना० ॥ कहे वहुने काढ घरणी, कुटुंबनो जो होये रथी हो ॥ ना० ॥ ५ ॥ काढी वहु काली हाथे, बुद्धसिंह निसरीयो साथै हो | ना० ॥ मान जिहां नवि लहीए, ते नगरी मांहे नवि रहीए हो ॥ ना० ॥ ६ ॥ एम चिंतवी नीकलीयां, सारथवाहने जइ मलीयां हो ॥ ना० ॥ पदमश्री देखी बलीयो, सारथवाहनो मनं चलीयो हो ॥ ना० ॥ ७ ॥ श्रादर बहोलो १ मूर्ख. ཟླ་ 1 ՀԱՏ

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