Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 315
________________ 7 तस कीधो, अरधासन बेसण दीधो हो ॥ ना० ॥ जो ए जम घर जावे, तो नारी मुज घर यावे हो | ना० ॥ ८ ॥ चिंतवी एम रसोइ, विष सहित करावे सोइ हो ॥ ना० ॥ जोजनवेला सुविसाले, जमवा बेठा एक थाले हो ॥ ना० ॥ ए ॥ रसवती पीरसी जुइ, बुद्धसिंह मन शंका दुइ हो ॥ ना० ॥ जला बेठा नाइ, एक थाल किसी जुदाई हो || ना० ॥ १० ॥ एम कही नेलं अन्न कीधुं जम्या विष मन्न हो ॥ ना० ॥ पड्या मूरबा खाइ, लोके कयुं शेठने जाइ हो ॥ ना० ॥ ११ ॥ शोकाकुल तिदां यावे, पदमश्री एम बोलावे हो ॥ ना० ॥ पुत्र सारथवाह खांणी, में साकणी तुं सही जाणी हो ॥ ना० ॥ १२ ॥ एहने तुं जीवामे, नहींतर घालुं तुज खांडे हो ॥ ना० ॥ संकट ए को श्राव्यं, पदमश्री मनमां जाव्युं हो ॥ ना० ॥ १३ ॥ सतीए जपी नवकार, उतार्यो विषनो जार हो | ना० ॥ पंच दिव्य तिहां वूगं, शासननी देवा तुम हो ॥ ना० ॥ १४ ॥ पदमश्री प्रिय साथे, नगरे आणी नरनाथे हो ॥ ना० ॥ बोध जति बुधदास, करे जैन धरम उल्लास हो ॥ ना० ॥ १५ ॥ हुं तिहां समकित पामी, प्रत्यक्ष | फल देखी स्वामि हो | ना० ॥ कुंदलतानी कसोटी, ए वातां सघली खोटी दो ॥ ना०

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