Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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Vतोपण ए फल सांजली, पामी बु वैराग लालरे ॥ प्रिय पूबी करी पारj, व्रत बेशु
धरी राग लालरे ॥ सा ॥ १ए॥ महीमा दीगे धरमनो, एणे सघले साक्षात् लालरे || तोपण नोग तजे नहीं, तेणे जूठी कहुं वात लालरे ॥ सा ॥ २०॥ आठमा खंम
तणी कही, अग्यारमी ढाल रसाल लालरे ॥ रंगविजय शिष्य एम जणे, नेमविजय | उजमाल लालरे ॥ सा॥१॥
___ जो ए संयम श्रादरे, तो सघ कहुं सत्य ॥ नूपादिक सहुको कहे, अहो अहो |ताहरी मत्य ॥१॥ व्रत सेवा मुज मन हतुं, पड्यो जोगने पास ॥ दीक्षा बेशुं हवे श्रमे, एम जंपे अईदास ॥२॥जोजन नक्ति करी नली, नृप संप्रेड्यो धाम ॥ श्रान दिवस उंडव करी, धन खरच्युं शुज गम ॥३॥ सद्गुरु पासे संयम लीयो, आग नारीशुं अर्हदास ॥ तप जप कर्म खपावीने, कीधो शिवपुर वास ॥४॥ सुहस्ती सूरि देशन सुणी, संप्रति नाम नरेश ॥ जिनवर धर्म विशेषथी, वरतावे निज देश ॥५॥ धरम करो जवियण सदा, धरमे नावठ जाय ॥धरमे मनवंडित फले, वसे शिवपुर माय |॥ ६ ॥ जिन प्रासाद करावीयां, दीधां बहु परे दान ॥ जनम सफल करी आपणो,
॥१६४

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