Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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खो दैत्य संहारवा, थया उद्यमवंतो ॥ हरि हरणांकस मारीयो, नरसिंह बलवंतो ॥ सां० ॥ १० ॥ म क अवतार लेइ, सहु असुर विदार्या ॥ दश अवतारे जुजुश्रा, दश दैत्य संहारा ॥सां ॥ ११ ॥ माने मूढ मिथ्यामति, एहवा पण देवो ॥ फेर फेर अवतार |ले, देखो कर्मनी देवो ॥ सां० ॥ १२ ॥ स्वामि शोने जेवो, तेहवो परिवारो ॥ एम जाणीने परिहरो, नेमविजय विचारो ॥ सां० ॥ १३ ॥
ढाल बीजी. उधव माधवने केजो - ए देशी.
जगनायक जिनराजने, दाखवीए देव ॥ मूकाणा जे कर्मथी, सारे सुरपति सेव ॥ ज० ॥ १ ॥ क्रोध मान माया नहीं, बांड्यां आठे मदथान ॥ रति रति वेदे नहीं, नहीं लोन अज्ञान ॥ ज० ॥ २ ॥ निद्रा शोक चोरी नहीं, नहीं वय अलीक ॥ म वर जय बंध प्राणीनो, न करे त्रण तीक ॥ ज० ॥ ३ ॥ प्रेम क्रीमा न करे कदी, नहीं नारी प्रसंग || हास्यादिक अढार ए, नहीं जेहने अंग ॥ ज० ॥ ४ ॥ पद्मासन पूरी करी, बेठा अरिहंत ॥ निश्चल लोयण जेहनां नाशाय रहंत ॥ ज० ॥ ५ ॥ जिनमुद्रा जिनराजनी, दीठे परम उल्लास ॥ समकित थाये निरमलु, दीपे ज्ञान उजास

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