Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 326
________________ धर्मपरी ॥१३॥ ढाल अगीरमी. जगजीवन जग वालहो-ए देशी. अश्वने मूकी श्रांगणे, जिनहर मांही जाय लालरे॥ पदपंकज परमेष्ठिनां, प्रणमी जणे सुणीताय लालरे ॥ साचो धरम संसारमा ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ साचो धरम संसारमां, धरम करो सहु कोय लालरे ॥ धरमे धण कण संपजे, धरमश्री शिवसुख होय लालरे ॥ सा ॥२॥ अमे विद्याधर आवीया, श्रष्टापदनी जात्र लालरे ॥ अश्व | तुमारो श्राणीयो, तुज दी ग्याँ गात्र लालरे ॥ सा॥३॥ शरण करी नृप शेठनो, चरण नमे वारंवार लालरे ॥ मूकी सेना मोकली, देवे थंनी जे छार लालरे ॥ सा ॥४॥ सुरदेव काउस्सग्ग पारीने, दय सोंप्यो नृप हाथ लालरे॥वय गये संयम लीयो, शेव नूपति बे साथ लालरे ॥५॥ विद्याधर उठव करी, पहोत्या निज आवास लालरे ॥ एम प्रत्यद फल देखीने, धरम को उबास लालरे ॥ सा ॥६॥ नारी सहित कहे शेठजी, ते नाख्यु ए सत्य लालरे ॥ कुंदलता कहे एकली, ए पण वात असत्य लालरे ॥ सा ॥७॥ चित्त मांहे एम चिंतवे, श्रेणिक अजयकुमार लालरे ॥ प्रत्यक्ष दी उलवे, अहो पापिणी ए नार लालरे ॥ सा ॥ ७ ॥ हुँ एहने रुमी परे, ॥१६३

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