Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 312
________________ । १५६ ॥ धर्मपरी० कीसी, वलतुं बोले बुद्धसिंह बोल || सो० ॥ के परशुं के सरणं श्रागनुं, ए मुज जाणो वचन अमोल || सो० पु० ॥ ६ ॥ श्राश्वासीने तेह जमामीयो, करशुं तादरुं वेगुं काम || सो० ॥ दिन दिन देहरे जाइ उपासरे, श्रावक थयो कपट परणाम ॥ सो० पु० ॥ ७ ॥ बुद्धसिंहे परणी रिषन सुता, पदमश्री आणी श्रावास ॥ सो० ॥ मिथ्या करणी देखी तेहनी, दिल मांही ते रही विमास ॥ सो० पु० ॥ ८ ॥ पदमश्रीने बुध गुरु एम कहे, पुत्री सिध्यां वंदित काम || सो० ॥ सर्व धर्म मांहे बोध धर्म वडो, जिहां दुःख तणुं नहीं नाम ॥ सो० पु० ॥ ए ॥ उत्तर वलतो पदमश्री दीए, हंस सरिखा जे नर होय ॥ सो० ॥ पाणी दूध पटंतर ते करे, अरिहंत धर्म समो नहीं कोय ॥ सो० पु० ॥ १० ॥ बिनदास असण करी आराधना, काळे प होतो मुगति मोऊार ॥ सो० ॥ सासु ससरो नणंद विशेषयी, संतापे वली तस जरतार ॥ सो० पु० ॥ ११ ॥ तोपण धरम न मूके मानिनी, ससरो कहे वहु सांजल वात ॥ सो० ॥ तारो बाप मरी मृगलो थयो, वनमां मुज गुरु लही अवदात ॥ सो० ॥ १२ ॥ जो तुम गुरु एवा ज्ञानी अबे, तो परजाते तेह जमान ॥ सो० ॥ हुं पण साचो धरम समाचरुं, नाखुं मिथ्यामति सवि बांग || सो० पु० ॥ १३ ॥ वहुनुं वचन सु खंग ॥ १५६

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