Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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मेंपरी
१५५॥
हेवू नहींरे, जीतारि कहे तामरे ॥ जीयो नर लक्ष्मी लहेरे, वरे मृतने सुरवामरे ॥ ए॥१७॥
जीवेच लज्यते लक्ष्मीः। मृते चापि सुरांगना ॥
कायोऽयं क्षणविध्वंसी । का चिंता मरणे रणे ॥१॥ पामे शिवसुख जीवतोरे, एम समजाव्यो नरंदरे ॥ आठमा खमनी पांचमीरे, ढाल कही नेमे आणंदरे ॥ ए० ॥ १७ ॥
उदा. ___ जीतारि गढमा रह्यो, जवदत्त जांजी पोल ॥ नगर बुंटवा मांडीयो, थयो हाल कलोल ॥१॥ मुज कारण अनरथ होये, सुमित्रा देख सरूप ॥ सागारी अणसण करी, जाइ पमी जल कूप ॥२॥ पुण्य प्रजावे थल थयु, थावी सुरवर कोड ॥ सती थापी सिंहासने, उन्ना बे कर जोम ॥३॥ राजजुवनमा पेसतां, देवे थंन्यो नवदत्त॥ एहवे किणही श्रावीने, कहे सुमित्रा क्त्त ॥५॥ तज्यो क्रोध अहंकार सुण, पाम्यो परम समाध ॥ सुमित्राने श्रावी कहे, नगिनी खम अपराध ॥ ५ ॥ जीतारि जवदत्त
॥१५

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