Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 308
________________ मेंपरी १५४॥ ढाल पांचमी. सुमला संदेशो कहे मारा पूज्यनेरे, मानीश तुज उपगाररे-ए देशी.. एहवे अंगदेशनो धणीरे, नवदत्त नामे नूपालरे ॥ जीतारि नृप प्रते एम कहेरे, मुजशु करो विवसालरे ॥ ए०॥ १॥दासीना पुत्र तुज केम देरे, जाति हीण मनमा जाणरे ॥ राजकन्या जोग ए केम होयरे, बोलजे विमासी वाणरे ॥ ए॥२॥ नवदत्त कहे जाति शुं करेरे, जो मांहि गुण नवि होयरे ॥ गुणने आदर सहुँ करेरे, जाति न माने कोयरे ॥ ए० ॥३॥ गुणवंत तो पिण तुज जणीरे, कन्या केम देवायरे ॥ जो लाखिणी तोपण वाणहीरे, तेहिज पेहेरवी पायरे ॥ ए० ॥४॥ राज्य तणी करे कामनारे, तो पुत्री परणावरे ॥ नहिंतर बेवे लेयशुरे, मुज वचन मन लावरे ॥ ए॥ ५ ॥ जीतारि कहे जीतशेरे, संग्रामे मुज जेहरे ॥ मुजयी श्रधिको जे होशेरे, कुंवरी पति गणे तेहरे ॥ ए० ॥६॥ घर आवी सेना सजीरे, जव चाले नवदत्तरे ॥ राणी कहे तिणे अवसरेरे, एक सुणो प्रनु वत्तरे ॥ ए० ॥ ७॥ कन्या काजे कलह किशोरे, सरखे कुले विवाहरे ॥ नृप कहे वचन जीतारिनुरे, कारण ककारण उच्चाहरे ॥ ए० ॥ ७ ॥ नवदत्त आव्यो उतावलोरे, अरिनी सीम नजीकरे ॥ ॥१५४

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