Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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परी
242 11
डहा·
लेवा ब्राह्मण गया, तव ते थथा अंगाल ॥ क्षण एक रहीने वली ग्रहे, जब थाये ते व्याल ॥ १ ॥ वृद्धे भूपतिने कयुं, नहीं जगन फल नाथ ॥ विश्वभूति कृत दान फल, इह जव परजव साथ ॥ २ ॥ नूप जणे विश्वभूतिने, हुं श्राव्यो तुज गेह ॥ जगन्य श्राध फल लेश्ने, दान याध फल देह ॥ ३ ॥ विश्वभूति बोले हसी, दान फल न देवाय ॥ देव तणुं वित्त ल्यो तमे, अध फल यो कहे राय ॥ ४ ॥ विश्वभूति वलतुं कहे, सांजल राय सुजाण ॥ स्वर्ग मुक्ति सुख जेहमी, ते कोण वेचे दान ॥ ५ ॥ देखी सत्य नृप द्विज तणुं, त्रुट्यो आपे रिद्ध | दलिय गयुं विश्वमूतिनुं, जिहां साहस तिहां सिद्ध ॥ ६ ॥ नूपति पूबे मुनि प्रते, दान केतां कहो | स्वाम ॥ त्रिधा दान मुनिवर कहे, दीधे सीजे काम ॥ ७ ॥
ढाल चोथी.
नयरो नगीनो मारो, हाररो हीरो मारो, केसररो जीनो मारो साहेबो, राजेंद्र मारा, घडी एक रहो जूकाय हो-ए देशी
शास्त्रे दान ते जाणी, राजेंद्र मारा, रा० लिख लिखावी ग्रंथ हो ॥ साधु जी
खं
॥ १५२ ।

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