Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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खंम ७ मो.
उदा. पूजे चंदनश्री प्रते, अईदास उदास ॥ नामनी ते जगवंतनो, लह्यो धर्म तेम नास ॥१॥ कहे नारी कपीथपुरे, अरिमर्दन राजान ॥ सोमदत्त ब्राह्मण वसे, दारिख तणो निधान ॥२॥ तेहनी नारी सोमीला, ताप थकी मूझ सोय ॥ रति नवि,
पामे द्विज किहां, करे उःख बहु रोय ॥३॥ सोमदत्त वनमा गयो, मख्यो साधु मकाहानाग ॥ तेहने वचने उपन्यो, निर्जय मन वैराग ॥ ४॥
यतः- नवौतबिलेऽमुष्मिन् । कलेवरगृहे किल ॥
जीवस्य वसतः काल-व्यालतः कुशलं कियत् ॥ १॥ श्रावकनां व्रत आदरी, श्राव्यो नगर मोकार ॥ धर्म प्रनावे धन मट्यु, तज्या पाप व्यापार ॥ ५॥ वामवने माने घj, व्यवहारी धनपाल ॥ स्वामी जाणी थापणो,
करे सार संजाल ॥६॥ रोगाकुल थयो एकदा, ब्राह्मण ते सोमदत्त ॥ तेमावी धनलापालने, कहे बांधव सुण वत्त ॥ ७ ॥

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