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सु०॥ ११ ॥ तव राम मनमां चिंतवे, शोकनो संबंध हो लागे मनमां खार के ॥ ते माटे सहु एम कहे, मुज न घटे हो काढवी घर बार के ॥ सु० ॥१२॥ एक दिन वस्त्र ते धोयवा, धोबीने दीधां हो रामचंड तेणी वार के ॥ राते पलाळी मूकीयां, प्रजात||
उठी हो जगाडे नार के ॥ सु० ॥१३॥ उठरे रांड तुं सुश् रही, राजा करशे हो आपपाणने रीस के ॥ वेहेला वस्त्र जो श्रापीए, तो नूपति हो थापे आशीष के ॥ सु०
॥ १४ ॥ तव धोबण मुखथी कहे, जे मूरख हो शुं लव करे आज के ॥ तुं ने राजाबे जण मली, जाउं जंचा हो ज्यां ने जमराज के ॥ सु०॥१५॥ राजानो सेवक एक जणो, सूची थावा हो बेठो तेणे गम के॥सांजले धोबीनी वातमी, कहे नारीने हो तुं सांजल | थाम के ॥ सु० ॥ १६ ॥ ताहरा नाक कान वाटुं हुं तो, राजाने घरे हो एहवा थाये, चयन के ॥ रावणे बार वरस लगे, सीता राखी हो कीधां मोटां फयन के॥सु० ॥१७॥
ते बगमी घर माय बे, हुं तो नवि राखं हो एहवी जे नार के ॥ ते सेवके वात सांजानली, राय पासे हो विनवे तेणी वार के ॥ सु० ॥ १७ ॥ रामचं मन चिंतवे, नारी
माथे हो कलंक चड्यो जेह के ॥ सीता सती माहरी खरी, पण एहनो हो उतारं एक