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पिरी०सेवा चाकरी हो करे तापस नार के ॥ सु ॥३॥ खिणखिणमां करे श्रावीने, पुण्य
योगे हो सर्व विधि व्यवहार के ॥ अनुक्रमे कुंवर मोटा थया, जर जोबन हो पाम्या तेणी वार के ॥ सु० ॥४॥ करम जोगेश्रावी मल्यो, लश्कर नेलो हो कीधो अपार के॥ वनिता नगरी उपरे, चडी श्राव्या हो लमवाने तेणी वार के॥ सु०॥५॥ को विद्याधर आवी विनवे, तुम जनक हो रामचंदर राय के ॥ ते साथे तुम लमतां थका, जगमां अपजश हो तुमने घणो थाय के ॥ सु ॥६॥ वली विद्याधर जश् कहे, राम श्रागल हो विनवे महाराज के ॥ ए कुंवर दोय तुम तणा, तेहने तेमी हो मनावो| आज के ॥ सु० ॥ ७॥ तव राम ने लक्ष्मण बे मली, दोय कुमर हो तेमाव्या तेणी|| वार के ॥ साजन सहु आवी मल्या, अंग उलट हो उपन्यो अपार के ॥ सु० ॥ ७ ॥ सीता तेमावी ततक्षणे, शंका टाली हो मननी ततकाल के ॥ उजम अंगमें अति घणा, सुख विलसे हो दंपती उजमाल के ॥ सु० ॥ ए ॥ सीतानी शोक ते एम | कड़े, राम पागल हो कुड कपटनी वात के ॥ सीता नारी जे तुम तणी, रावणे राखी हो लंपट कुजात के ॥ सु० ॥१०॥ बगडी नारी जे तेहने, केम राखवी हो । घटे घर मांय के ॥ निंदा थाय ने नातिमां, काढी मेलो हो बीजे कोय गय के ॥
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