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वानर राज हो, गुण् सुग्रीवनो विचार नुयोजी ॥ १६ ॥ सुग्रीव तणी जे नार हो, गुण वाली वानर ले हारीयोजी ॥ तव श्रीरामे तेह हो, गुण वाली वानर ते मारीयोजी ॥ १७॥ सुग्रीव थापीयो राज हो, गुण् नारी श्रावी तारा रंग जरीजी तव बोल्यो सुग्रीव राय हो, गु० कार्य कहो स्वामि कृपा करीजी ॥ २७ ॥ तुमे परपकारी हो, गु० कीधो स्वामि मुज श्रति घणोजी॥ नेह थकी तुमे देव हो, गुण सेवक हुँ ढं स्वामि तुम तणोजी ॥ १५ ॥ राम कहे सुणो मित्र हो, गु० नारी ग मुज तणीजी॥ तेहनो करो संजाल हो, गु० किदां ने सीता वसन घणीजी ॥२०॥ पांचमा खंम तणी ढाल हो, गु० बीजीए कही निरमलीजी ॥ रंगविजयनो शिष्य हो, गुळ नेमविजय कहे अति जलीजी ॥१॥
उदा सोरठी. सुग्रीवे तेड्यो ताम, हनुमंत वीर सोहामणो ॥ ते गयो लंकाए सार, शुरू करेवा नामणो ॥१॥ मुधिका थापी सार, संदेशा कह्या श्रीराम तणा ॥ प्रशंसी सीता नार, कह्यो कुशल ने बेहु जणा ॥२॥ लंका बाली हनुए, शुद्ध श्राणी सीता तणी ॥ श्रीराम दुवो संतोष, सैन्य चाब्युं लंका नणी ॥३॥ वानर सहु मिलेव, परवत उचेली