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धर्मप
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किंवा सत्य करशे एह किंवा नहीं करे, ए वातनो संदेह ते मनमां श्रति धरे । पुस्तक | लेइने चाल्यो व्यास जात्रा जणी, गंगा श्राव्यो शुभ गात्र करवा हुंश घणी ॥ २ ॥ ताम्र तणुं एक जाजन जलुं बे माहरूं, रखे तस्कर लेइ जाय इहांथी परुं ॥ वेलुनो कीधो पुंज गंगा तटमां जर, ते मांही घाट्यो जाजन शंका मननी गइ ॥ ३ ॥ गंगा नदी मांही व्यास पेठो यावी वही, हरि हरि करी मुख जंपे उबाले जल रही ॥ जात्रा करण बहु लोक मली सदु श्रावीया, व्यासे की धो वेलु थोक देखी मन जावीया ॥ ॥ ४ ॥ कोई कहे एवं लिंग होये ईश्वर तणुं हुं पण थापुं एवं करीने प्रतिपणुं ॥ जे श्राव्या इता लोक तेणे पुंज थापीया, वेलु तथा हुवा गंज अन्योन्य व्यापीया ॥ ॥५॥ स्नान तर्पण करी व्यास नीकल्यो उतावलो, ताम्र जाजनना पुंज देखी थयो जांजलो ॥ पोता तणो कीधो पुंज ते नवि उलख्यो, सरखा सरखं रूप देखी मनमां धख्यो ॥ ६ ॥ जो जांजुं सवि पुंज तो अपजश सदु करे, ईश्वर देवना लिंग तणो रूप केम फिरे ॥ ताम्रतपुं मुज जाजन जार्ज तो जार्ज परुं, अपजश बोले लोक तेहथी हुं मरुं ॥ ७ ॥ तेम माद्री कथा फोक ते केम होये वली, जेम एक ढगली देखी कर्या सहुए मली ॥ एक करे तेम सर्व करे लोक एणी परे, परमारथनी बुद्ध कोश मन नहीं
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