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प्रदेशोदय में रह जाते हैं। पुरुषार्थ से विपाकोदय होता है। रूस में पहले इतने शिक्षित नहीं थे। इन चालीस वर्षों में सब शिक्षित हो गए। क्या चालीस वर्ष पहले उनके भाग्य का उदय नहीं था और अब भाग्य जाग गया? हिन्दुस्तान में पहले लड़कियां नहीं पढ़ती थीं। आजकल पढ़ रही हैं। क्या यह मानें कि आज की सब लड़कियों को ज्ञानावरण का क्षयोपशम है और पहले ज्ञानावरण का उदय था? क्षयोपशम भी पुरुषार्थ के बिना निकम्मा चला जाता है। चश्मा लगाने से दर्शनावरण का क्षयोपशम हो जाता है और चश्मा हटाने से दर्शनावरण का उदय हो जाता है।
चूरू और टमकोर के बीच एक गांव में राजपूत गुरुदेव के पास आया और बोला-'आजकल जमाना खराब आ गया। जमींदारी चली गई। दुःखी हो गए।' गुरुदेव ने पूछा-'घर में कितने आदमी हैं?' 'घर में छोटे-मोटे दस हैं।' 'कमाने वाले कितने हैं?' 'कितने क्या, मैं एक ही हूं।' 'दुःख जमाने का नहीं है, तुम्हारी गलत मान्यता का है। जब दो हाथ कमाएं
और दस मुंह खाएं, वह जमाना सदा खराब है। चाहे वह सतयुग भी हो। श्रम के बिना विधाता भी कुछ नहीं कर सकता। प्यास लगी है, पर नौकर के बिना पानी कैसे पीएं? जहां ऐसी गलत मान्यता घर कर चुकी हो, काम करने को छोटा माना जाता हो, वहां कभी दुःख का अन्त नहीं होता।'
श्रम के अभाव में निकम्मापन आता है। उससे गरीबी आती है और फिर उससे बीमारी बढ़ती है। जापान आदि देशों में स्त्री और पुरुष दोनों काम करते हैं। वहां पूंजीपति भी कार्य में व्यस्त मिलेगा। कोई निकम्मा, खाली हाथ नहीं मिलेगा।
एक बार जयप्रकाशनारायण और उनके जापानी मित्र उत्तर
धर्म कैसे? 1 २३
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