Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 198
________________ का खर्च करते हैं, प्रदर्शन करते हैं, यह अनर्थहिंसा नहीं है? शादी में हजारों को खिलाते हैं, बाहर जाकर वे ही गालियां देते हैं और आलोचना करते हैं-बिना प्रयोजन इतना खर्च किया है। प्रयोजन की व्यर्थता सिद्ध होने पर अर्थहिंसा भी अनर्थहिंसा हो जाती है। आडम्बर और प्रदर्शन जो अनावश्यक होता है, उसे बन्द करना चाहिए। अर्थहिंसा आवश्यकतावश स्वीकार की आती है। जो आवश्यकता से अधिक होता है, वह अनर्थहिंसा की श्रेणी में चला जाता है। बैलगाड़ी में खंजन देना आवश्यक होता है। वहां भी दो-चार सेर तेल डालें तो अनावश्यक हो जाता है। जितने से परिवार का काम चल सके वहां तक तो आवश्यक या अर्थहिंसा है, पर उससे अधिक हो, वह अनावश्यक या अनर्थ-हिंसा है। हर व्यक्ति यह विवेक कर सकता है कि यह अर्थहिंसा है या अनर्थहिंसा है। समाज में सभी हिंसा छूट जाए, सम्भव नहीं है, क्योंकि समाज चल नहीं सकता। पर अनर्थहिंसा से बचा जा सकता है। धर्म क्यों करें? अनर्थहिंसा को समाप्त करने के लिए। जो इस अर्थ में धर्म को स्वीकार करता है। वह संयमी बनता है, व्यक्तिगत जीवन में संयम को स्थान देता है। 000 समाज के परिप्रेक्ष्य में अर्थहिंसा और अनर्थहिंसा १८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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