Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 197
________________ साध्वी रूपांजी काठियावाड़ में थे। वहां काफी विरोध चल रहा था। आहार और पानी नहीं मिल रहा था। तब पूज्य गुरुदेव ने स्वयं पांच विगय खानी बन्द कर दी और द्रव्यों में कमी कर दी। हम लोगों ने पूछा-'आप विगय क्यों नहीं लेते?' उत्तर मिला-'ऐसे ही।' जब काठियावाड़ से समाचार मिला कि वहां की व्यवस्था ठीक हो गयी है। तब गुरुदेव ने विगय लेना स्वीकार किया। इसका नाम है समाज, तभी लोग आदेश मानते हैं। जहां सामाजिकता और परस्परता नहीं होती, वहां कौन किसका कहना मानता है। ___बड़े लोग अपने लिए अच्छा से अच्छा खाते हैं, लेकिन जब समाज का प्रश्न आता है तब उसे अनर्थदण्ड (हिंसा) मान लेते हैं। यहीं चिन्तन में त्रुटि आ गयी है। इसको मिटाए बिना स्वस्थता नहीं आती। आनन्द श्रावक के जीवन को देखें। पांच सौ हल चलते थे, चालीस हजार गाय-बैल थे। चार करोड़ हिरण्य व्यापार में लग रहे थे। किन्तु व्यक्तिगत जीवन संयमित था। फलों में आंवला से अतिरिक्त फल नहीं खाता था। एक अंगोछे से ज्यादा काम में नहीं लेता था। यह था अर्थदण्ड और अनर्थदण्ड का विवेक (अहिंसा और अनर्थहिंसा का विवेक)। अपने जीवन में संयम था और सारी सम्पत्ति परिवार तथा समाज के लिए थी। आज उल्टा चक्र चल रहा है। अपने लिए सब कुछ किया जाता है और समाज के लिए संयम की बात सोची जाती है। होना यह चाहिए कि व्यक्तिगत जीवन में संयम हो, कम-से-कम वस्त्र और खाद्य सामग्री का उपयोग हो, जिससे पदार्थों के प्रति आसक्ति न बढ़े। सबसे पहले अनर्थहिंसा को समझें। शादी में पचास हजार १८९ म धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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