Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 146
________________ उत्तर मिलता है, समय नहीं है। काम करने वाला कभी नहीं कहता, समय नहीं है। प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू से पूज्य गुरुदेवश्री पूछा-'आपको पढ़ने का समय मिलता है क्या?' 'हां!' 'कब?' 'जब सोता हूं।' प्रधानमन्त्री को भी समय मिलता है, पर आप लोगों को नहीं मिलता। __ पुरानी घटना है, सम्राट भरत चक्रवर्ती थे। इतना बड़ा राज्य था फिर भी निश्चितता थी। उसके यहां मंगलपाठक रहते थे। ‘वर्धते भयं' --यह मंगलपाठ एक मुहूर्त तक चलता रहता था। भरत ने स्वयं उनको नियुक्त किया था। 'वर्धते भयं' -यह मंगलपाठ मुझे सुनाएं जिससे मैं प्रमाद में न फंसूं। क्या हम निर्भय हो गए जो सोचने की आवश्यकता ही नहीं समझते? थोड़ा-बहुत समय लिखने-पढ़ने और चिन्तन में लगाना चाहिए। जो अपने बारे में नहीं सोचते, वे भयंकर भूल करते हैं। उन लोगों ने दूसरों को ज्यादा कष्ट पहुंचाया, जो स्वयं नहीं सोचते। अपने को जानो, अपने आपको पहचानो। जो अपने को जान लेता है, वह सबको जान लेता है। आचार्य कुंदकुंद ने केवली की परिभाषा की है जो अपने आपको जान लेते हैं वे केवली हैं। केवली सबको जानता है, यह व्यवहार की बात है। निश्चय में वह अपनी आत्मा को ही जानता है। जो एक को जानता है, वह सबको जानता है। अपने आपको तभी जान सकते हैं जब अपने से भिन्न को भी जानेंगे। दूसरों को बिना जाने एक को कैसे जाना जा सकता है? अस्तित्ववाद ने विद्यार्थी जगत् को प्रभावित किया है। वह कहता है, जब तक अपने अस्तित्व को नहीं जानते तब तक कुछ नहीं जानते। हर व्यक्ति को अपने बारे में ही सोचना चाहिए। जिसने स्वयं सामायिक धर्म १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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