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हिंसा और अहिंसा
'रागद्वेषादिकल्लोलैरलोलं यन्मनोजलं। स पश्यत्यात्मनस्तत्त्वं, तत् तत्त्वं नेतरो जनः ॥'
सत्य हमारे सामने है, किन्तु हर आदमी देख नहीं पाता। सत्य को वही देख पाता है जिसका मन राग-द्वेष की ऊर्मियों से प्रतिहत नहीं है। हमारे सामने रहे हुए सत्य को भी हम नहीं देख सकते। जब तक आंख पर राग और द्वेष का चश्मा लगा रहता है। तब तक यथार्थ दिखाई नहीं देता। रंगीन चश्मे से जो है वह दिखाई नहीं देता, जो नहीं है वह दिखाई देता है। लाल चश्मे से वस्तु लाल और पीले चश्मे से पोली दिखाई देती है। राग का चश्मा लाल है, द्वेष का चश्मा श्याम है। इससे सारी वस्तु काली दिखाई देती है जबकि दिखना चाहिए यथार्थ।
___ सत्य क्या है? अनादिकाल से यह प्रश्न चर्चित रहा है। बहुत-से आचार्यों ने, चाहे वे जैन के हों, चाहे वेदान्त के हों, चाहे दूसरे धर्म के हों, सभी ने इस प्रश्न पर गहराई से मीमांसा की है।
सत्य और भ्रान्ति दो हैं। जो सत्य नहीं है, उसे सत्य मान लेना भ्रान्ति है। असत्य को सत्य और सत्य को असत्य मानना
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