Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 189
________________ १. निश्चित - वह विचाररहित होता है । वह काम करने की चिन्ता का भार नहीं ढोता । २. बहुभोजी - वह बहुत खाता है । ३. ४. ५. 1 अत्रपमना - वह लज्जारहित होता है वह रात-दिन सोने वाला होता है । वह कर्तव्य और अकर्तव्य के चिन्तन के लिए बधिर ( गूंगा) और अंधा होता है । ६. वह मान और अपमान को समान मानने वाला होता है । मान और अपमान में समान रहने का नाम वीतराग है । समत्व की अनुभूति के कारण वीतराग मान और अपमान में समान रहते हैं । परन्तु मूर्ख को मान और अपमान की अनुभूति ही नहीं होती । वह कभी रोगग्रस्त नहीं होता । वह पुष्ट शरीर वाला होता है, मोटा-ताजा होता है। ७. प्रतिक्रिया का जीवन अहिंसक इसलिए व्यवहार नहीं करता कि दूसरा मेरे साथ अच्छा व्यवहार कर रहा है । वह बुरा व्यवहार करने वाले के प्रति भी अच्छा व्यवहार करता है । कूप में मुंह डालकर मूर्ख कहने वाला मूर्ख शब्द ही सुनेगा, क्योंकि ध्वनि की प्रतिध्वनि होती है, क्रिया की प्रतिक्रिया होती है । • अहिंसक प्रतिबिम्ब का जीवन जीना नहीं चाहता । • अहिंसक प्रतिक्रिया का जीवन जीना नहीं चाहता । • अहिंसक प्रतिध्वनि का जीवन जीना नहीं चाहता । एक ने अच्छा व्यवहार किया, इसलिए मैं उसके साथ अच्छा १८० धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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