Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 176
________________ कोई प्रश्न करता है कि क्या करते हो? वह कहेगा-घड़ा बना रहा हूं। मिट्टी में पानी डाल चाक पर चढ़ाते समय कोई पूछे तो वही उत्तर देगा-घड़ा बना रहा हूं? डोरी से मुंह काटकर घड़ा नीचे उतारने पर प्रश्न पूछे तो भी वह वही उत्तर देगा। लोग कहते हैं, आवां से पकने पर जब वह बाहर आता है तब घड़ा बनता है। प्रश्न होता है-मिट्टी खोदते समय, चाक पर चढ़ते समय क्या घड़ा नहीं है? यदि नहीं है तो केवल पकने पर कैसे होगा? मिट्टी खोदने से पकाने तक की सारी प्रक्रिया घट की ही है। पहली क्रिया में घट नहीं है तो अन्तिम क्रिया में वह घट कैसे होगा? धर्म से मोक्ष भी उसी क्षण मिलता है। वर्तमान जीवन की विमुखता से यथार्थ पर आवरण आ गया है। होना यह चाहिए कि वर्तमान का जीवन अच्छा हो। परलोक न बिगड़े, यह एक पक्ष है। सत्य यह है कि परलोक सुधरने से पहले वर्तमान सुधरे। वर्तमान सुधरने से परलोक स्वयं सुधर जाएगा। वर्तमान में कैसा जीवन जी रहा हूं, इसकी चिन्ता करने से बुढ़ापे की चिन्ता नहीं होती। जवानी की अवस्था में अच्छा कमाने पर बुढ़ापे में चिन्ता नहीं होती। बुढ़ापे में तो परिणाम आएगा। वैसे ही परलोक तो परिणाम है। खेती करने वाला चिन्ता यह करता है कि खेती अच्छी हो। जानवर न खाएं। फसल तो अपने आप आएगी। सामायिक करने से संवर वर्तमान में होता है या कुछ दिनों बाद? उपवास करने से निर्जरा उसी समय होती है या समयान्तर से? जब सामायिक का संवर और उपवास की निर्जरा वर्तमान में होती है, तब धर्म के लिए भविष्य की भविष्य की परिधि : वर्तमान का केन्द्र म १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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