Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 175
________________ हुए कहते-संस्कृत अलूणी शिला है। जिस दिन इसका स्वाद आ जाएगा, तुम छोड़ोगे भी नहीं। उनकी प्रेरणा से हम कुछ विद्यार्थी साधुओं ने संस्कृत रटना, पढ़ना और लिखना प्रारम्भ किया। प्रारम्भ में रस नहीं आया, लेकिन अब आ रहा है। कालूगणी की प्रेरणा, पूज्य गुरुदेव का प्रयत्न और हम बाल-साधुओं की परस्पर प्रतिस्पर्धा से ही हम लोगों ने संस्कृत में गति की। आज जब मैं अनपढ़ों का जीवन और पढ़े-लिखों का प्रमाद खोता हूं तो सोचता हूं, इनका जीवन में कैसे विकास होगा और ये कैसा जीवन जीते हैं? धर्म और अध्यात्म भी प्रारम्भ में अलूणा लगता है। अभ्यास से इतना रस आता है कि फिर वह छोड़ा नहीं जाता। जिसका मन सामायिक करने में लग जाता है, फिर वह उसे नहीं छोड़ सकता। धर्म इसलिए किया जाता है कि इसमे उत्तरोत्तर मन की प्रसन्नता और आनन्द बढ़ता जाए। कपिल मुनि ने चारों को शिक्षा देते हुए कहा-- अधुवे असासयंमि, संसारम्मि दुक्खपउराए। किं नाम होज्ज तं कम्मयं, जेणाहं दुग्गईं न गच्छेज्जा ॥ यह संसार अध्रुव और अशाश्वत है, कृपया बताइए वह कौन-सा कर्म है जिससे दुर्गति में न जाऊं। यह मन से निकाल दीजिए कि मरने से दुर्गति या सद्गति मिलेगी, परलोक में सुख मिलेगा या दुःख-यह स्थूलदृष्टि है। मोक्ष यहीं होगा और इसी क्षण में होगा। वर्तमान में यदि मोक्ष नहीं होगा तो भविष्य में भी नहीं होगा। घड़ा कब बनता है? कुम्हार मिट्टी खोदता है तब। यदि १६६4 Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200