Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 166
________________ के प्रमाद से सखे, मेरा क्षीर सिन्धु क्षार सिंधु हो गया।" यह एक मात्रा के अन्तर का कितना सुन्दर उदाहरण है। जब इतने त्रुटिपूर्ण साधन हमारे पास हैं, तब हमें यह मानना पड़ता है कि हमारे पास कुछ और होना चाहिए। तभी मैंने अपनी कविता में एक बार कहा था यह प्रतीति सत्यों की गठरी, कब तक इससे लदे रहोगे, जीवन में अनुभूत नहीं है, वही वही क्या सदा कहोगे? इसलिए जब तक हम मान्यताओं से ऊपर नहीं उठेंगे तब तक यथार्थ तक नहीं पहुंच पाएंगे। ___ आज लोग विज्ञान को केवल दो शताब्दी पुराना ही मान बैठे हैं। इस काल में जो अन्वेषण और प्राप्ति विज्ञान ने की है सिर्फ वही विज्ञान है ऐसी लोगों ने धारणा बना ली है। लेकिन उपलब्धियां सामने हैं, वे विज्ञान नहीं हैं। वे तो उपलब्धियां मात्र हैं। यथार्थ भाव से देखना ही विज्ञान है। आत्मा से भिन्न कोई विज्ञान है ही नहीं। अणुबम विज्ञान की देन है। लेकिन वह अपने आप कुछ नहीं कर सकता। क्योंकि वह जड़ है। चेतना की शक्ति ही उसका उपयोग करके विनाश ढहाती है। शक्तियों का विकास कोई दोष नहीं है लेकिन उसका उपयोग सही ढंग से हो। जो विज्ञान को बुरा कहते हैं, उन्हें यह भी मानना पड़ेगा कि धर्म भी बुरा है क्योंकि उनको अलग करने का हमारे पास कोई साधन नहीं है। धर्म और विज्ञान त्रिकालाबाधित सत्य हैं, यही निष्कर्ष है। अध्यात्म की तरह विज्ञान का क्षेत्र भी अत्यन्त प्राचीन धर्म और विज्ञान में १५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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