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तक नहीं पहुंच पाते। बड़े योगी, तपस्वी साधक थे। वे जवाहरात का काम करते थे। किसी व्यक्ति के साथ सौदा किया था। भाव बढ़ गए। भाव इतने बढ़े कि बेचने वाले का दिवाला होने की स्थिति आ गई। रायचन्द ने सौदे का पत्र मांगा, पर वह कांप रहा था, देने से हिचकिचा रहा था। रायचन्द के अधिक आग्रह पर उसने पत्र दिया। रायचन्द ने यह कहते हुए पत्र को तत्काल फाड़ दिया कि रायचन्द्र दूध पी सकता है, किसी का खून नहीं पी सकता। इसका नाम है करुणा। धार्मिक होकर दूसरों को नष्ट करने की बात सोचे, क्या वह धार्मिक है? धार्मिक चींटी को चीनी डालते हैं, पर मनुष्य के साथ क्रूर व्यवहार करते नहीं सकुचाते। जहां स्वार्थ को चोट न पहुंचे, वहां तक वे अहिंसा व करुणा का आचरण करते हैं। जहां स्वार्थ टूटता है, वहां वे क्रूर बन जाते हैं।
भगवान महावीर ने स्थान-स्थान पर करुणा का उल्लेख किया है। जिसमें अहिंसा और करुणा की भावना नहीं, उसका धर्म में प्रवेश भी नहीं होता। श्रावक के व्रतों को देखिए। अपने आश्रितों का भक्त-पान विच्छेद करना एक अतिचार है।
मुनीम, नौकर या कोई आश्रित है, वह बीमार पड़ जाए तो सहानुभूति या दवा की बात तो दूर उसके साथ निर्मम व्यवहार किया जाता है। एक दिन काम न करने पर उसका वेतन काट लेते हैं। कहीं-कहीं पर मार-पीटकर उसे नौकरी से भी हटा देते हैं।
___ महाराष्ट्र में एक राज्याधिकारी था। उसके पास एक क्लर्क काम करता था। टेबुल पर एक तार पड़ा था। अधिकारी आया। उसकी दृष्टि तार पर पड़ी। उसे उठाया और जल्दी में पढ़ गया। उसमें लिखा था-तुम्हारी माता गुजर गई। उदास होकर बैठ
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