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धर्म और अनगार धर्म। आगार धर्म गृहस्थ का धर्म है। अनगार धर्म साधु का धर्म है। गृहस्थ का धर्म बारह प्रकार का है-पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत। इनमें उपासना का विधान है, आचार की प्रधानता है।
हमने सम्यक् दर्शन पर काफी चर्चा की है। सम्यक् दर्शन की चार कक्षाओं (सुलभबोधि, सम्यक्दर्शी, व्रती और प्रतिमाधारी श्रावक) में से दो कक्षाओं पर चर्चा चल चुकी है। तीसरी कक्षा व्रती की है।
मनुष्य को व्रती बनना चाहिए। जो महावीर के अनुयायी हैं, जो वास्तव में सफल जीवन जीने के इच्छुक हैं, उन्हें व्रती बनना चाहिए। वर्तमान में सफल जीवन जीना ही धार्मिक का लक्षण है। एक व्यक्ति धार्मिक भी है और वर्तमान में शान्ति भी नहीं है, उसे धार्मिक मानने में संकोच होता है। जो वर्तमान को कलिकाल कहकर कोसते हैं, उसके लिए सत्युग कब आएगा? हमारे वर्तमान जीवन में मोक्ष का साक्षात्कार होना चाहिए। आनन्दपूर्ण जीवन या सुखी जीवन जीने के लिए व्रती होना आवश्यक है। व्रती कौन?
निःशल्यो व्रती' –जिसके शरीर में शल्य होता है, वह स्वस्थ नहीं होता। शल्य यानी आन्तरिक घाव। पुराने जमाने में बाणों से लड़ाई होती थी। बाण निकालने पर उसकी नोक भीतर रह जाती थी। वह शल्य कभी-कभी आदमी को भी मार देता था। कैंसर क्या है? भीतर का फोड़ा ही तो है। जब तक शल्य रहता है, नींद नहीं आती। सर्दी में यदि पैर में बड़ा कांटा चुभ जाता है तो वह नींद को हराम कर देता है। छोटी-सी सलाई
धर्म की तीसरी कक्षा-व्रती बनना = ७७
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