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इन दवाओं से होने लगा है। अमेरिका में इसका प्रयोग चलता है। याद रखिए, स्वभाव बदला जा सकता है। धर्म का अर्थ ही है-स्वभाव बदलना। यह मानना भूल है कि स्वभाव बदला नहीं जा सकता। । आदत कभी नहीं बदल सकती, यह किसने अज्ञान फैलाया? यह गलत है। यदि स्वभाव नहीं बदल सकता तो आपको धर्म करने की आदत छोड़ देनी चाहिए। आदत न बदले तो तपस्या, ध्यान, स्वाध्याय किसलिए है? आप मानिए कि साधना से आदत बदलती है। बुरे काम करने वाले के मन में भावना जाग जाए कि यह मुझे नहीं करना है तो वह छोड़ सकता है। बुरी आदत है तो जंगल में या एकान्त में जाकर स्वतः सूचना दो कि मुझमें प्रेम, मैत्री का विकास हो रहा है। आधा घंटा तक दोहराएं तो चमत्कारपूर्ण असर होगा।
__ क्यों मान बैठे कि स्वभाव नहीं बदले? हर आदत को बदलना है। कोई श्रावक साधु बनता है, संयम करता है, क्या वह नहीं बदलता? ऐसे भी साधु हैं जो गृहस्थ अवस्था में एक दिन में १० बार लड़ते थे। लेकिन साधु बनने के बाद एकदम बदल गए। कभी मत मानिए कि आदत नहीं बदलती। बच्चा एक बार असावधानी से बिगड़ जाता है। वह न सुधर सके तो क्या इसका अर्थ होगा वह सदा के लिए बिगड़ गया? बिगड़ा हुआ बालक भी सुधरता है, और आदमी भी सुधरता है। स्वभाव भी बदला जाता है। बुरे स्वभाव का परिवर्तन करना ही धर्म है।
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