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में ऋजुता होनी चाहिए। जिसमें सरलता नहीं होती उसका जगत् में विश्वास नहीं होता।
समाज का व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखना चाहता है। शक्तिहीन व्यक्ति अच्छा जीवन नहीं जी सकता। सम्यक्दृष्टि तीव्र लोभी नहीं होता। करोड़ रुपये होने से तीव्र लोभ होता है और पचास हजार होने से तीव्र लोभ नहीं होता-यह नहीं है। तंदुलमच्छ छोटा-सा जीव है। वह मगरमच्छ की आंख की भौंहों में बैठा रहता है। बड़ी-बड़ी मछलियां मच्छ के मुंह में आती रहती हैं। वह सोचता रहता है-यह कितना मूर्ख है, खाता नहीं। मैं होता तो सबको खा जाता। वह खा नहीं सकता, केवल आसक्ति के कारण सातवें नरक में चला जाता है।
- भरत चक्रवर्ती ने छह खण्ड पर राज्य किया। उसने साठ हजार वर्षों में छह खण्डों को जीता था। उसका राज्य कितना विशाल था? भगवान की सभा में एक व्यक्ति ने प्रश्न किया-'आपकी सभा में क्या कोई मोक्षगामी है?' हां, भरत है।' इतनी लड़ाई लड़ने वाला, इतना समारंभ करने वाला यदि मोक्ष जाएगा तो नरक कौन जाएगा?' वही भरत स्नान-गृह में है, मुद्रिका को कभी खोल रहा है, कभी पहन रहा है। ऐसे खोलते और पहनते केवलज्ञान हो गया। फिर हम क्यों इतनी तपस्या करें, क्यों सामायिक करें, क्यों साधना करें, क्यों नहीं अंगूठी पहनते और उतारते रहें? आप इस प्रकार की बात को पकड़ेंगे। आप याद रखिए, ऊपर की क्रियाओं से कुछ नहीं होगा जब तक कि अन्तर की गांठ नहीं खोलेंगे। बाह्य दवा से रोग नहीं मिटेगा जब तक पेट की क्रिया ठीक नहीं होगी। हो सकता है, रोग एक बार दब जाए। लेकिन वह फिर उभर आएगा। चाहे कोई साधु हो
सम्यक्दृष्टि (२) म ५१
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