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तक भोगना पड़ता है। किसी व्यक्ति ने कोई वस्तु खाई। उसका स्वाद जीभ पर आधा या एक मिनट तक रहता है। किसी का स्वाद चार-पांच मिनट भी टिक जाता है, परन्तु उसी वस्तु का परिणाम वर्षों तक भोगना पड़ सकता है। परिणाम को जानते हैं, फिर ऐसा क्यों करते हैं? जानते हुए भी मोहवश ऐसा कर लेते हैं। महाभारत में कहा है-धर्म को जानते हैं, फिर भी उसमें प्रवृत्ति नहीं होती। अधर्म को जानते हैं, लेकिन वह छोड़ा नहीं जाता।
कथाभट्ट का पुत्र अपने पिता के पास आया। अपनी समस्या सामने रखते हुए बोला-अभी-अभी जजमान के घर भोजन करके आया हूं। गले तक छक गया हूं। पेट पर अफारा आ गया है। पेट तन रहा है। इसी क्षण दूसरे का निमंत्रण और आ गया है। अब क्या करूं? पिता ने पुत्र को सलाह दी
'परान्नं प्राप्य दुर्बुद्धे! मा प्राणेषु दयां कुरु। परान्नं दुर्लभं लोके, प्राणाः जन्मनि जन्मनि ।'
-मिठाई का निमंत्रण यदि आ गया है तो प्राणों पर दया मत कर। मिठाई दुर्लभ होती है, प्राण तो अगले जन्म में तैयार मिलेंगे। ___अधिक खाने के दुष्परिणाम को भोगता हुआ भी व्यक्ति मोहवश मनोज्ञ पदार्थ नहीं छोड़ सकता। लोग विषय-भोग के परिणामों को जानते हुए भी अपनी शक्ति और वीर्य की सुरक्षा नहीं कर पाते। यूनानी दार्शनिक सुकरात से किसी ने पूछा-'पुरुष को अपने जीवन में संभोग कितनी बार करना चाहिए?' सुकरात ने जवाब दिया-'जीवन में एक बार। इतना सम्भव न हो तो
सम्यक्दृष्टि (३) म ५५
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