Book Title: Devki Putra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 5
________________ D रणना पृथ्वीप्रदेशमां आव्या.॥१०॥ . . प्रणिपत्य जिनं सम्यम्। विशुद्धभावा विशुद्धतरविधिना // उपविविशुर्जिनवदन-न्यस्तदृशस्ते यथास्थानं // __ अर्थः-निर्मलभाववाळा ते छए भाइओ, सम्यक प्रकारे शुद्ध विधिपूर्वक प्रभुने वांदीने, प्रभुना मुखतरफ दृष्टि राखीने योग्य स्थानकपर बेसी गया. // 11 // . धर्मोपदेशमर्हन् / दिशति पर्षदि गिरा सुधानिभया॥ प्रतिपद्यततो धर्म / लोकाः स्वं स्वं गृहं प्राप्ताः॥१२॥ * अर्थ:-त्यारे प्रभुए पर्षदानीअंदर अमृतसरखी वाणीवडे धर्मनो उपदेश आप्यो. पछी लोको ते धर्मस्वीकारीने पोतपोताने घेर गया. // 12 // . lol षडपि कुमारास्ते जिन-देशनया संगताः सुवैराग्यं // नत्वा जिनं तपस्या-दानधिया निजगृहं जगमः // ID अर्थः-ते छए कुमारो प्रभुनी देशनाथी उत्तम बैराग्य पामीने प्रभुने वंदन करी दीक्षा लेवानो मनोरथ : करता-ol थका पोताने घेर गया. // 13 // ... पितरावबोधयंस्ते / निबंधपरा महाग्रहेण ततः // विषयसुखश्रीललना-प्रेमादि निवेद्य कष्टकरं // 14 // अर्थः-पछी तेओ निश्चयपूर्वक घणाज आग्रहथी, विषयसुखो,लक्ष्मी तथा स्त्रीओना प्रेमआदिकने दुःखदाइ जणाबीने पोताना मातापिताने समजाव्या. // 14 // MECENE CERESCEN IEEEEEEEEEEE SodunGunAthal madARNAL

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