Book Title: Devki Putra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 15
________________ ISIE अर्थः-एरीते श्रीजिनेश्वरप्रभुतुं वचन सांभळीने देवकीजीए त्यां समवसरणमां पंक्तिबंध बेठेला, तथा अति देवकीपुत्र आकरा तपथी.तपरूपी धनवाळा ते मुनिराजोने जोया. // 52 // 10 चरित्रम् 1 संजातातिप्रकर-स्तन्यं ततः क्षरंती ता तेषां // संनिधिमागात्तत्र / तत्कालमेवातिहृष्टमनाः // 53 // // 14 // a अर्थः-पछी अत्यंत धाराबंध उभरी निकळेला स्तन्यने झरनारी ते देवकीजी तेज वखते मनमां, अत्यंत / क खुशी थइने तेओनी पासे आवी. // 53 // सुचिरमनिमिषमेता-नालोक्य मुनीनरिष्टनेमिजिनं // नत्वा च देवको सा। स्वयानसंस्थागमद्गेहं // 5 // अर्थः-पछी ते देवकीजी निमेषरहितपणे ते मुनिओने निरखीने, तथा श्रीअरिष्टनेमिप्रभुने चांदीने पोताना 12 वाहनमां बेसी घेर आव्या. // 54 // अथदेवक्याचिंता / संजाता चेतसोति सौख्यहरा // आसन्निमे सुताः षट् / परमेको लालितो न मया // अर्थ:-पछी ते देवकीजीने सुख हरनारी पोताना मनमा एवी चिंता थइ के, मारे आ छ पुत्रो हुता, परंतु / / ओमाथी एकने पण हुँ रमाडीशकी नहीं. // 15 // पण्णामेषामुपरि / श्रीमत्कृष्णोधभरतभूभर्ता // जातो वृद्धि प्राप-नंदयशोदागृहे हा धिक् // 56 // SESECSCECOSITE RSEEDSesses kese Jun Gunkarach

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