Book Title: Devki Putra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 24
________________ चरित्रम् देवकीपक स्थापयत ततस्तदनु-ज्ञया कनी तौ च सारशृंगारां // कन्यांतःपुरमध्ये कृतविश्वासी प्रियसखोभिः // 8 // ___ अर्थ:-अने पछी तेनी रजा मेळव्यावाद उत्तम शृंगारवाळी, तथा तेनी प्रिय सखीओसाथे तेणीने विश्वासमा का " लेइने तेणीने कन्याओना अंतःपुरमा राखजो? // 8 // इत्यादिश्य मुरारिः / कन्याशिक्षामिमां प्रदाय पुनः // समवर्ति गत्वाशु / जिनोपदेशं शृणोतिस्म 90 _ अर्थः-परीते ( पोताना माणसोने ) हुकम करीने, तथा फरीने ते कन्यामाटेनी तेओने भलामण आपीने, श्रीकृष्ण तुरत समवसरणमां जइने प्रभुनो उपदेश सांभळवा लाग्या. // 9 // भवजलनिधावपारे / भो भव्या नरकदायिं विषयजले // व्याधिक्षार विपाके / मोहग्राहौघपरिपूर्णे // 21 // संकल्पानल्पलुल-कल्लोलभरे भवेत्परित्राण // चारित्रयानपात्रं / विना निपततां नृणां नैव ॥९२॥युग्म अर्थ:-हे भव्यलोको! नरक आपनारा विषयोरूपी जलवाळा, रोगोरूपी खारना विपाकवाळा, तथा मोहरूपी मगरोमा समूहथी भरेला, // 91 // तथा अनेक संकल्पीरूपी उछळता मोजांओना.समूहवाळा आ संसाररूपी अपार महासागरमां पडेला मनुष्योने चारित्ररूपी वहाणविना कोइ पण रक्षण करी शकतुं नथी.॥१२॥ विषयाः किंपाकफलो-पमा वपुः श्रोविनश्वरा विफला // श्रीः सर्वाः स्वजनानां / भावियोगाश्च संयोगाः SECCCCCCCCCCG *93eeeseesaavoBeebie Jun Gun Aaradhik dauncatnaslin M.S. . Ram

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