Book Title: Devki Putra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ // 34 // एतत्कायममत्वं / त्यज जीव प्रशमनं च हृदि कृत्वा // प्रतिमास्थ एव धर्म-ध्याने दृढतां भजस्वपरां // देवकीपुत्र __ अर्थः-अरे जीव / हृदयमा शांति राखीने तुं ओं शरीरंनी ममतानी त्याग कर ? अने कायोत्सर्गारहीने धर्म चरित्रम् * ध्यानमाज अति दृढपणु धारण कर ? // 33 // एवं प्रवर्धमान-ध्यानक्षपिसात्मकर्ममलराशिः॥ ज्ञान केवलमाप्य / प्राप्तोऽऽसौ शाश्वतं स्थानं // 34 // म अर्थ:-रीते वृद्धिपामा शुभध्यानवडे करीने कोरूपी मेलनी समूहने नष्ट करीम, तथा केवलज्ञान पामीने ते गजसुकुमालमुनि शाश्वत स्थान (मोक्षने) प्राप्त थया:-३५॥ शिवगमनेऽस्य चकार-सन्नसुरौधो हितत्र महिमानं // अतिसुरभि पुष्पवस्त्रे-वैषणसंगीतवादिनः // अर्थ-दरीत तेमनु मोक्षगमन थाथी नजदीकमा रहेला देवोना समूहे त्या अतिसुगंधि पुष्पो, तथा वस्त्रोनों न fol, वरसाद, संगीत तथा वाजिनीवडे महिमा कर्योः // 36 // . गजकमालमुनीश्वर-वेदनरसभरविवर्धितोत्साहः // प्रातः सपरीवारः / समवसृति केशवोऽचालीत् 36 ....अर्थ:-पछी प्रभाते ते गजसुकुमालमुनिश्वरने वांदवानों रसना समूहथीं वृद्धि पामेल छै उत्साह जेनो, एवा ते श्रीकृष्ण परिवारसहित (प्रभुना) समनसरणतरफ चाल्या. // 6 // TREESESES

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