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________________ xnn. // श्रीजिनाय नमः॥ premeremernererseareraneermeans // अथ श्रीदेवकीपुत्रचरित्रम् // (मूलकर्ता-श्रीशुभवर्धनगणी) to (भाषांतरसहित) भाषांतर करी छपावी प्रसिद्ध करनार-पण्डित हीरालाल हंसराज-(जामनगरवाळा) : संवत् 1990 किंमत रु. 1-8-0 सने 1936 श्रीजैनभास्करोदय मिन्टिंग प्रेसमा छाप्यु-जामनगर. भी लानागरिकानमदिर श्री मापीर शन आराधना कन्द्रावा, DESIBIDISTEISTEENSISISISTRICISSISTED जि गांधीनगर
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________________ न.१२ देवकीपुत्र चरित्रम् . ॥श्रीजिनाय नमः॥ . . // श्रीचारित्रविजयगुरुभ्यो नमः // // अथ श्रीदेवकीपुत्रचरित्रं प्रारभ्यते // (मुलकर्ता-श्रीशुभवर्धनगणी) . .. (गुर्जरभाषांतरोपेतं ) भाषांतरकर्ता तथा छपावी प्रसिद्ध करनार-पण्डिल हीरालाल हंसराज-(जामनगरवाळा) त्रिविष्टपपुरस्पर्धि-श्रीपदं भहिलाभिधं // पुरं भूषाकरं पृथ्व्याः / परमं धर्ममंदिरं // 1 // To अर्थः-स्वर्गपुरीनी स्पर्धा करनारी लक्ष्मीना स्थानकसरखं, तथा पृथ्वीने शोभावनालं, अने धर्मना श्रेष्ठ मंदिर सरखु भद्दिलपुरनामर्नु नगर छे. // 1 // प्रशास्त्यखंड साम्राज्यं / जितशत्रुमहीपतिः // तत्र यस्य यशोहंसः / प्रक्रीडति जगत्कजे // 2 // E@GeeeeeaseEE नामी केलासमागग्सुरि काममंदिर से भावीर जैन आराधना केन्द्र, काबा, लि गांधीनगर 4. Glicatnasuri MS. iladkistanisundatlantatwasa S Jun Gun Ada arnadbasini.hinthindianninthialisaniyamirmilindiatv.singindia
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________________ __ अर्थः-ते नगरमां जितशत्रुनामे राजा अखंडपणेराज्य करतो हतो, के जेनो यशरूपी हंस जगतरूपी कमलपर देवकीपुत्र क्रीडा करतो हतो. // 2 // MO पुनांगस्तत्र पुरे। श्रेष्ठी न्यवसद्गुणप्रिया श्रेष्ठः // सुलसेत्याख्या तस्या-मलशोलगुणा प्रेयसी प्रवरा की - अर्थः ते नगरमां गुणोनी लक्ष्मीथी शोभितो पुनागनामे शेठ वसतो हतो, अने तेने निर्मलशीलरूपी गुणो वाळी सुलसानामनी उत्तम स्त्री हती. // 3 // hष विनयनयोपेता-स्तस्याः सुताश्चंद्रचारुकीर्तिभराः॥ आयस्तिलकयशाःश्री-अनंतसेनस्त्वजितसेनः // 10अनिहतरिपुश्चतुर्थः / सुदेवसेनश्च शत्रुसेनश्च // एते क्रमेण जाता। भूमिपतिलक्षणोपेताः॥ ५॥युग्म + अर्थ:-ते सुलसाने विनयी अने न्यायगुणवाळा, तथा चंद्रसरखी मनोहर कीर्तिना समूहवाळा, अने राजाना KI लक्षणोवाळा छ पुत्रो हता, तेओमा अनुक्रमे पेहेलो तिलकयशा, बीजो अनंतसेन, बीजो अजितसेन, चोथोपा अनिहतरिपु, पांचमो सुदेवसेन, अने छठ्ठो शत्रुसेन, एम (तेओनां नामो हतां.)॥४॥५॥ युग्मं // यावत्ते तारुण्यं / प्रगतास्तरूणीमनोविनोदकरं // प्रत्येकं द्वात्रिंशत् / कन्याः परिणायिताः पित्रा // 6 // अर्थ:-पछी युवान स्त्रीओने आनंद उपजावनारी यौवन अवस्थाने ज्यारे तेओ पाम्या, त्यारे पिताए ते दरेकने SISeeeeeeeeeeeeee SCH dunratnasurn MS. dur Gup ARMY
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________________ 爱发形检控股哈哈底 बत्रीस बत्रीस कन्याओ परणावी. // 6 // चरित्रम् as द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशद् / रजतमहोरजतकोटयः प्राप्ताः // करमोचनवेलाया-मेतैः स्वश्वशुरवर्गेभ्यः // 7 // अर्थ:-त्यारे हस्तमोचनसमये तेओ सर्वने पोतपोताना ससराओ प्रासेथी बत्रीस त्रीसकोड रूपामहोरो, तथा सोनामहोरो, प्राप्त थइ हती. // 7 // प्रत्येकं द्वात्रिंश-द्वासावासेषु जितविमानेषु // द्वात्रिंशत्कन्याभिः / सार्ध विलसंति ते सुधियः // 8 // अर्थ:-उत्तमबुद्धिवाळा तेओ दरेक देव विमानोने पण जीतनारा बत्रीसवत्रीस. मेहेलोनी अंदर ते बत्रीस बत्रीस कन्याओनी साथे भोगविलासो भोगवे छे. // 8 // समयेऽस्मिन्नेमिजिनः / समवसृतस्तत्पुरोमहोयाने // श्रीजितशत्रुनरेंद्र-स्तं नंतुमगात्सपरिवारः // 9 // अर्थः-एवामां श्रीनेमिनाथप्रभु ते नगरीना महान् उद्यानमा आवी समोसर्या, त्यारे जितशत्रुराजा तेमने चांद-15 वामाटे परिवारसहित त्यांआव्यो.॥९॥ . o श्रुत्वा जिनातिं ते मित्रः सह बांधवा मुदितमनसः // समवसरणभूभाग। संप्राता निजनिजमहा अर्थः प्रभुनु आगमन सांभळीने ते छए भाइओ मनमा आनंदपामताथका पोतपोतानी समृद्धिसहित ते समवस-Jal Jun cu fatado USESeeeeee sunratnasdr M.S..
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________________ D रणना पृथ्वीप्रदेशमां आव्या.॥१०॥ . . प्रणिपत्य जिनं सम्यम्। विशुद्धभावा विशुद्धतरविधिना // उपविविशुर्जिनवदन-न्यस्तदृशस्ते यथास्थानं // __ अर्थः-निर्मलभाववाळा ते छए भाइओ, सम्यक प्रकारे शुद्ध विधिपूर्वक प्रभुने वांदीने, प्रभुना मुखतरफ दृष्टि राखीने योग्य स्थानकपर बेसी गया. // 11 // . धर्मोपदेशमर्हन् / दिशति पर्षदि गिरा सुधानिभया॥ प्रतिपद्यततो धर्म / लोकाः स्वं स्वं गृहं प्राप्ताः॥१२॥ * अर्थ:-त्यारे प्रभुए पर्षदानीअंदर अमृतसरखी वाणीवडे धर्मनो उपदेश आप्यो. पछी लोको ते धर्मस्वीकारीने पोतपोताने घेर गया. // 12 // . lol षडपि कुमारास्ते जिन-देशनया संगताः सुवैराग्यं // नत्वा जिनं तपस्या-दानधिया निजगृहं जगमः // ID अर्थः-ते छए कुमारो प्रभुनी देशनाथी उत्तम बैराग्य पामीने प्रभुने वंदन करी दीक्षा लेवानो मनोरथ : करता-ol थका पोताने घेर गया. // 13 // ... पितरावबोधयंस्ते / निबंधपरा महाग्रहेण ततः // विषयसुखश्रीललना-प्रेमादि निवेद्य कष्टकरं // 14 // अर्थः-पछी तेओ निश्चयपूर्वक घणाज आग्रहथी, विषयसुखो,लक्ष्मी तथा स्त्रीओना प्रेमआदिकने दुःखदाइ जणाबीने पोताना मातापिताने समजाव्या. // 14 // MECENE CERESCEN IEEEEEEEEEEE SodunGunAthal madARNAL
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________________ देवकी स्वपदरजीवत्त्यक्त्वा / धनकोटिं लीलयैव ते कुमराः // श्रीमन्नेमिजिनेंद्रां-तिके ललुर्भावतो दीक्षा 150 अर्थः-पछी ते कुमारोए पोताना पगनी रजपेठे कोडोगमे धन तजीने श्रीमान् नेमिप्रभुपासे भावथी दीक्षा लीधी. घोरमभिग्रहमेवं / जगृहुस्तस्मिन् दिने विभोः पावें // आजन्मावधि कार्य / षष्ठं तपोऽस्माभिरनुबंधात् In अर्थ:-तेज दिवसे तेओए प्रभुपासे एवो तिव्र अभिग्रह लीधो के, निश्चयपूर्वक अमो छेक जीवनपर्यंत छठनो की क तप करीशु. // 16 // क पठित चतुर्दशपूर्वाः / क्रमेण ते नेमिभगवता साधे // चर्बिहारमनिशं / प्रशमरसाापूर्णतरहृदयाः / अर्थी अनुक्रमे करेल छे चौदै पूर्वोनो अभ्यास जेओए, तथा अतिशांतरसथी भरेला हृदयवाळा एवा ते छए मुनिराजो हमेशां श्रीनेमिनाथप्रभुसाथे विहार करता हता. // 17 // H सहविहरन्नई-न्नेमिगिरिनारगिरिमहोयानं / अन्येारलंचक्रे / सुरकोटोवंदितपदाब्जः // 18 // fol अर्थ:-एक दिवसे फोटोगमें देवोथी वंदायेला छे चरणकमलो जेमना, एवा ते श्रीनेमिनाथप्रभु ते 'छए, मुनिNo ओसहित विचरताथका गिरनारपर्वतमा महान् उद्यानने शोभाववा लाग्या. // 18 // श्रीनेमेरागमनं / तद्वनपालान्निशम्य गोविंदः // सानंदः समवमृति / समागमत्स्फारविस्तारः // 19 // ESERSITESessele A Jun Gun Aarache ratnasur MS Maha hai ........
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________________ Fre देवकीपत्र // 6 // // SEC8 - अर्थ:-से वननुं रक्षण करनारा वनपालकपासेथी श्रीनेमिनाथप्रभुनु आगमन सांभळीने श्रीकृष्ण आनंदसहित ]io घणा विस्तारपूर्वक प्रभुना ते समवसरणमां आव्या. // 19 // जिनदेशनां भवभय-क्लेशहरी जिनमुखान्निशम्य हरिः / जातश्रदोधर्म-ऽधिकं पुनः प्राप निजनगरी // 2 अर्थः-संसारना भय अने क्लेशने हरनारी धर्मदेशना प्रभना मुखथी सांभळीने धर्ममां अधिक श्रद्धावाळो थयोथको कृष्ण पाछो पोतानी नगरीमा आव्यो. // 20 // . अथ षष्ठपारणे षण् / मुनयस्ते पौरुषीद्वयं कृत्वा // प्रतिलिख्य वस्त्रपात्रा-णि च पात्रं यत्नतो लावा // मत्वा श्रीनेमिजिनं / जगदुर्योंजितांजलिपुटास्तेऽथ // युगलत्रयेण यामी / भिक्षाये द्वारिकापुर्या ।२।युग्म। ol अर्थः-पछी ते छए मुनिओ छने पारणे वे पोहोर दिवस चड्यावाद यतनापूर्वक वस्त्रो तथा पात्रो प्रतिले खीने, अने पात्र लैइने, // 21 // श्रीनेमिनाथ प्रभुने वांदीने हाथ जोडी विनववा लाग्या के, हे भगवन् ! अमो बबेनी वर्ण जोडीथी द्वारिकानगरीमा भिक्षा लेवा माटे जइए छीये. // 22 // युग्मं // गंतव्यमप्रम-रेवं लात्वाहतो वचनमंत्र // अभ्यचलस्ते नाना-कुलाकुला द्वारिको विधिना + 23 // 02, अधी-तमारे सावचेतीथी जखु, एवीरीतना प्रभुना बचनरूपी मंत्रने लेइने, ते मुनिओ विविध कुटुंचोथी भरेली ICCEEDSEEeeesaseties Sileeeee sunratnasur.M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ बारिका नगरीमते विधिपूर्वक चालवा लाग्या. // 23 // .... तत्रोच्चनीचगेहा-न्यटन्नथाचं मुनीशयुग्मं तत् // भाग्यवशायेवक्या / गेहांगणमागतं सहसा // 24 // ___अर्थः-हवे तेओमान वे मुनिभोर्नु पहेलं जोड़े, त्या उचनीच घरोमां भमतु थकुं अचानक भाग्ययोगे देवकीना घरना आंगणामां आव्यु.॥२४॥ .. . हरिजननी स्वसखीयुक् / भद्रासनसंस्थिता विवेकज्ञा // मुनियुगमालोक्येतद् / दधावतिप्रेम भक्तिं च 25 अर्थ:-ते वखते पोतानी सखीओ साथे सिंहासनपर बेठेली, तथा विवेकने जाणनारी कृष्णनी माता दे ते मुनियुग्मने जोइने अत्यंत प्रेम अने भक्तिने धारण करवा लागी. // 25 // दत्वा प्रदक्षिणांव-दतिस्म साभिमुखमेत्य मुनियुगलं ॥प्रतिलाभयतिस्म पुनः / सुस्निग्धैमोदकैर्मुदिता / अर्थ:-पछी ते देवकीजीए ते मुनियुगलने प्रदक्षिणा देइने, तथा सन्मुख आवीने बांधा, अने आनंद पामीने तेओने खुब पृतथी भरेला मोदकोबडे प्रसिलाभ्या // 26 // Jio मुनियुग्मपरं तस्मिन् / गते समागात्तदैव देवक्याः // गेहे सदृशाकारं / पूर्वागतमुनियुगस्य पुनः // 27 // अर्थ:- मुनिओनुं ते युग्म गयावाद, बळी तेज समये पूर्व आवेला ते मुनिसरखाज आकारवाळु मुनिओ की EEEEEEEEEE 1 Dhirathasuli M.S. Jun Gun Aaradh Mytoloitatio . . . ....... LaaliNDARHINNAR
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________________ पला CIEC बीजं युग्म ते देवकीजीने घेर ( आहार लेवामाटे ) आव्यु // 21 // प्रतिलाभितं मनोहर- मोदकभक्तेन तदपि भावेन // देवक्या तार्तीयिक-मथ मुनियुग्ममागतं तत्र 28 अर्थ:-त्यारे देवकीजीए ते मुनि युग्मने पण भावपूर्वक प्रतिलाभ्यु, एवामां त्यां त्रीजं पण मुनियुगल आव्यु.॥ तदपि प्रतिलाभ्य मुदा / तथैव सा पृच्छतिस्म साशंकं // भो भगवंतो सुरपू:-सहशायां द्वारिकापुर्या // नान्यत्कुलानि किं पुनः पुनश्चराः पर्यटंति यन्मुन्यः // तस्याभावे मत्वा / तन्मुनियुगलमथाह ततः 30 A अर्थ:-ते मुनियुगलने पण तेवीज़ रीते हर्षथी प्रतिलाभीने देवकीजीए (मनमा) शंका लावीने पूछयु के, हे भगवन ! देवपुरीसरखी आ द्वारिकानगरीमा, // 29 // शु बीजां कुटुंबो वसतां नथी ? के जेथी मुनिओ वारंवार एकने एकज घरे भिक्षामाटे आवे छे ! त्यारे ते मुनियुगले तेणीना हृदयनो अभिप्राय जाणीने कडं के, ॥३०॥युग्म 10 निर्देषणमाहारं / संप्राप्तुं पर्यटति साधुवराः // हे हरिमातर्मधुकर-वृत्त्या नानाकुलानि किल // 3 // अर्थ:-हे कृष्णनामाता देवकीजी! निर्दोष आहार लेवामाटे उत्तम साधुओ खरेखर माधुकरी वृत्तिवडे भिन्न कुटुंबोमां विचरे छे. // 31 // .. .. ........ .... . नहोकगृहस्थकुलं / प्रविशन्ति पुनः पुनमहामुनयः // जाताभ्रांतिरियं ते / यास्माकं शृणु शुभे तत्वं // 33 // SSORSeasses EEEEX SCE athasur MS Jun Guil Antal
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________________ Basese ... अर्थ:-हे शुभ प्राविके ! महान मुनिओ खरेखर एकज गृहस्थना घरमां (आहारआदिक लेवामाटे) वारंवार जता नथी, अने तमोने अमारा संबंधमा जे भ्रांति थइ छे, तेनुं रहस्य तमो सांभळो ? // 32 // प्रौढश्री पुंनाग-सुलसयोरंगजा वयं षडपि // भदिलपुरि संजाताः। सहोदरा यौवनं प्राप्ताः // 33 // ...अर्थ:-अमो छए सहोदर बन्धुओ भद्दिलपुरमा वसता विशाल लक्ष्मीवाळा पुनागशेठ तथा सुलसाना पुत्रारूपे अवतरीने यौवनवय पाम्या हता. // 33 // कृतपाणिग्रहणास्तु / भोगश्रीलालसा विलासजुषः // प्रतिबोधं संप्राप्ताः / श्रीनेमिजिनोपदेशेन // 34 // Iol. अर्थः-पछी विवाह थयावाद अमो भोगो तथा लक्ष्मीनी लालसावाळा थहने विलास करता हता. अने त्यारवाद | श्रीनेमिप्रभुना उपदेशथी अमो प्रतिबोध पाम्या. // 34 // तेनैव जिनेन समं / कुर्वाणा विहृतिमात्तजिनदीक्षाः // संप्राप्ताः पारणके / षष्ठस्यायेह हरिपुर्या 35 - अर्थ:-पछी भागवती दीक्षा लेइने तेज प्रभुसाथे विचरताथका आजे छठुने पारणे अमो अहीं द्वारिकानगरीमा आव्या छीये. // 35 // lal सद्ग्रहमाप्ताः संघा-टकत्रयेणैव पृथग्पृथक्सवें // भ्रांतिमित्यपहृत्यतौ / देवक्याः साधूनिवृत्तौ // 36 // ledECCCEEDEDEOSBE Jun Gun Aaradhi M Granasur MS. A ........
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________________ अर्थः-अमो सधळा छए मुनिचाया गया. // 36 // नावहामिगर्व विशेषेण // Jo अर्थ:-अमो सघळा छए मुनिओ जूदा जूदा त्रणत्रणनी जोडीथी तमारे घेर आव्या छीये, एरीते देवकीजीनो वकीपुत्र संशय दूर करीने ते बन्ने साधुओ त्यांथी चाल्या गया. // 36 // 10 हृदि चिंतयतिस्म ततः / सा हरिणेकेन पुत्रिणी लोके // अहमस्मीति मुधैव / वहामिगर्व विशेषेण // In अर्थ:-पछी ते देवकीजी पोताना मनमा एम विचारवा लागी के, फक्त एक कृष्णवडे करीनेज हु पुत्रवाळी Timl / एवी आ दुनीयामां प्रायें करीने फोगरज अभिमानने धारण करूं छु.॥ 37 // Ko षडपि सुताः सुलसाया / रूपादिगुणेन यादृशाः संति // नान्यस्याः पुत्रा / दृश्यंते तादृशा लोके // 38 // अर्थ:-सुलसाना ते छए पुत्रो रूपआदिक गुणवडे जेवा शोभे छे, तेवा कोइ बीजी स्त्रीना पुत्रो जगतमा देखाता नथी. // 38 // तद्गत्वा पृच्छामि / श्रोनेमिजिनेंद्र मात्म संदेहं // यत्ते मुनयो नूनं / कृष्णसमभांति रूपेण // 39 // o अर्थ:-माटे हवे श्रीनेमिनाथप्रभुपासे जइने मारा मननो संशय पूछी जोड, केनके ते छए मुनिओ खरेखर रूपवढे करीने मारा कृष्णसरखाज देखाय छे. // 39 // जोवंत पत्र प्रोक्ताः। पूर्व मेऽतिमुक्तकेन षड्तनयाः / ध्यात्वेति सा समागा-जिनं च नत्वेति पप्रच्छ / SCCSESCCCCCCCCCSTS 0 pictunratnasuri M.S.. Jun Gan AaradhiFM
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________________ चरित्रम् ol अर्थः-वळी पूर्वे मने अतिमुक्त मुनिए कह्यु छे के, तारा छए पुत्रो जीवता छे. एमविचारीने ते देवकीजी प्रभुपासे आवीने, तथा तेमने वांदीने पूछवा लाग्यां के,॥ 40 // 1" स्वामिन् संशय एषः / ममेति संभाषितेऽनया स्वामी // साक्षाद् द्राक्षासहशी-मथावदत्कोमलां वाणी // - अर्थ:-हे स्वामी! (आ छए मुनिओना संबंधमां) मारा मनमां संदेह छे, एम देवकीजीए कहेवाथी प्रभु साक्षात् द्राक्षसरखी मधुरी वाणी बोल्या के, // 41 // BBeeeeeeeseED - अर्थ:-भदिलपुरनामना नगरमा नागनामना धनिकश्रेष्ठीनी सुलसानामे स्त्री छे, परंतु ते निंदु एटले मृतवत्सा छ, तेणीए भावपूर्वकहरिणैगमेषीदेवतुं आराधन कयु. // 42 // भृशमनुकंपावानपि / देवस्तस्याः सदैकचित्तायाः // जीवयितुं प्राग्भवघन-पापानालं ह्यपत्यानि // 43 // अर्थ:-हमेशां एकचित्तवाळी एवी ते सुलसाप्रते अत्यंत कृपाळु होवा छतां पण तेणीए पूर्वभवमा करेला कघणां पापोने लीधे खरेखर तेणीना संतानोने जीवाडवाने ते समर्थ थइ शक्यो नही. // 43 // गर्भास्तवघातार्थ / सप्त प्रायंत दुष्टचित्तेन // कंसेन वासावसरे / मथुरापुर्या नृशंसेन // 44 // . ECCESSSSSSSSESSI Juhatnasun MS Jun Gun Aaradhan
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________________ चरित्रम 12 // In अर्थ:-मथुरानगरीमां निवास करतीवेळाए दुष्टहृदयवाळा अने क्रूर एवा कंसे विनाश करवामाटे तमारा सात lol देवकीपुत्र गर्भो मागी लीधा हता. // 44 // // 12 // 10 गर्भिण्यौ भवतःस्म / युगपत्सुलसां त्वं च सुरमहिम्ना // अप्रतिहता सुराणां / केनापि क्वापि शक्तिरहो // a अर्थ:-पछी ते देवना माहात्म्यथी सुलसाए अने तमोए एकीवेळाए गर्भने धारण कर्या. अहो ! देवनी शक्तिने क्यांये कोइ पण अटकावी शकतो नथी. // 45 // / युगपर्जनयामासतु-रथ सुतयुगलं युवां ततो देवः // तव जातमात्रमंगज-युगं मुमोचाशु सुलसांके // __ अर्थः--पछी तमो बन्नेए एकीवेळाएज बबे पुत्रोने जन्म आप्या. त्यारे ते हरिणैगमेषी देवे तमारा बन्ने पुत्रोने जन्मतीवेळायेज तुरत सुलसाना खोळामां मेली दीधा. // 46 // मृतगर्भकंन्यधत्त / त्वदीयगेहे तथैव सुलसायाः // न विवेद कोऽपि किंचि-द्वयत्ययमेनं कदापि जनः // on अर्थ:-वळी ते देवे तेवीजरीते सुलसाना मृत्यु पामेला बालकने तारे धेर मूकी दीधा, आ फेरफारने को पण माणसे कोई पण दिवसे पण केईपण जाण्यो नथी. // 47 // त्वत्पुत्रास्ते देवकि ! सहोदराः षडपि न व्यजलदरुचः // वृद्धिं प्रापुः सुलसा-नागगृहे दिव्यतररूपाः // aacassaacaa SCENE Jun Gun Aaradh MusianratnasuriM.S....
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________________ डओ D ESSERE // देवकीपुत्र अर्थ:-हे देवकीजी! एरीते नवा मेघ सरखी कांतिवाळा, अने अतिदिव्य स्वरूपवाळा ते | तमारा पुत्री छे, अने सुलसा तथा नागश्रेष्ठिने घेर तेओ मोटा थया छे. // 48 // lo तारुण्ये द्वात्रिंशद् / द्वात्रिंशत्कन्यकास्ततस्ताभ्यां // परिणायिताश्च लब्धा-स्तन्मानाः स्वर्णकोटयश्च 49 का अर्थः-यौवनकाळे तेओने दरेकने तेओए यत्रीस बत्रीस कन्याओ परणावी, अने तेटलीज़ एटले यत्रीस ID मंत्रीस क्रोड सोनामोहोरो तेओने प्राप्त थइ. // 49 // IH अस्मद्देशनयाधिक-जातविवेकास्ततोभवविरक्ताः // षडपिललुस्ते दीक्षां / तृणवत् त्यक्त्वा विषयतृष्णां // अर्थः-पछी अमारी धर्मदेशनाथी वधारे विवेक उत्पन्न थवाथी ते छए भाइओए संसारथी विरक्त थइने, II तृणनीपेठे विषयोनी लालच तजीने दीक्षा लीधी.॥५०॥ .. षष्ठाभिग्रहवंतः। सदामुदा द्वादशांगधरणपराः // षडपि सुतास्तेऋषयो / ऽमीनिर्मल चरणकरणधराः // अर्थ:-पछी मुनि थयेला तमारा छए पुत्रो हमेशां हर्षथी छतपना अभिग्रहवाळा थयाथका द्वादशांगीना पारंगामी, तथा शुद्ध चरण करणने धरनारा थया. // 51 // त हरिजननी जिनवाक्यं / श्रुत्वा तान् पंक्तिसंस्थितानत्र // समवसृतावालोकत / तपोधनास्तीव्रतरतपसः॥ ICCESSEE keeeeeeeCES Jadse KAPratnasuri Ms. raminatantravasn a chalavani Jun Gun Aaradha t aranMAR mandanta masannaian
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________________ ISIE अर्थः-एरीते श्रीजिनेश्वरप्रभुतुं वचन सांभळीने देवकीजीए त्यां समवसरणमां पंक्तिबंध बेठेला, तथा अति देवकीपुत्र आकरा तपथी.तपरूपी धनवाळा ते मुनिराजोने जोया. // 52 // 10 चरित्रम् 1 संजातातिप्रकर-स्तन्यं ततः क्षरंती ता तेषां // संनिधिमागात्तत्र / तत्कालमेवातिहृष्टमनाः // 53 // // 14 // a अर्थः-पछी अत्यंत धाराबंध उभरी निकळेला स्तन्यने झरनारी ते देवकीजी तेज वखते मनमां, अत्यंत / क खुशी थइने तेओनी पासे आवी. // 53 // सुचिरमनिमिषमेता-नालोक्य मुनीनरिष्टनेमिजिनं // नत्वा च देवको सा। स्वयानसंस्थागमद्गेहं // 5 // अर्थः-पछी ते देवकीजी निमेषरहितपणे ते मुनिओने निरखीने, तथा श्रीअरिष्टनेमिप्रभुने चांदीने पोताना 12 वाहनमां बेसी घेर आव्या. // 54 // अथदेवक्याचिंता / संजाता चेतसोति सौख्यहरा // आसन्निमे सुताः षट् / परमेको लालितो न मया // अर्थ:-पछी ते देवकीजीने सुख हरनारी पोताना मनमा एवी चिंता थइ के, मारे आ छ पुत्रो हुता, परंतु / / ओमाथी एकने पण हुँ रमाडीशकी नहीं. // 15 // पण्णामेषामुपरि / श्रीमत्कृष्णोधभरतभूभर्ता // जातो वृद्धि प्राप-नंदयशोदागृहे हा धिक् // 56 // SESECSCECOSITE RSEEDSesses kese Jun Gunkarach
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________________ चरित्रम् // 15 // ...अर्थः-आ छ पुत्रोनी उपर अर्ध भरतखंडनो स्वामी जे कृष्णनामनो मने पुत्र थयो, ते पण अरेरे ! नंद अने देवकापुत्र यशोदाने घेर म्होटों थयो. // 56 // 15 // तन्मन्ये सा धन्या / सुलब्धनिजजनिफलाखिलस्त्रीषु // याऽपत्यानि निजानि / स्वयं प्रमोदेन लालयति D अर्थ:-माटे हुँ एम मार्नु छ के, जे स्त्री पोताना संतानोने पोते आनंदथी रमाडे छे, तेज धन्य छे, अने तेणीएज सर्व स्त्रीओमां पोताना जीवन- फल सारीरीते मेळव्युं छे. // 5 // - अहमस्मि तास्वधन्या। यया मया लालितः सुतो नैकः // एवं चिंतादूना / सा स्थाच्चक्षुर्गलबाष्पा 5-12 Jool अर्थः-हुं तो ते स्त्रीओमां निर्भागीछु, केमके जेणीए में एक पण पुत्र रमाड्यो नथी. ए रीते चिन्ताथी दुःखी थयेलां ते देवकीजीनी आंखोमाथी आंसुओ झरवा लाग्यां. // 58 // 100 जिष्णुस्तस्मिन् समये / सारपरीवारपरिवृतः श्रीमान् // सोत्कंठो गृहमागा-नतुं निजमातरं मुदितः 59 // अर्थ:-एवामां उत्तम परिवारथी घेरायेला श्रीमान् श्रीकृष्ण उत्कंठित थयाथका आनंद्र पामीने पोतानी माताने * नमवामाटे घेर आव्या. // 59 // मातुरवंदतपादौ / मृा भरतार्धभूपतिर्मुदितः / देवक्या दुःखादित-हृदा तदाज्ञायि न हि सोऽपि 60 INDunrainasuriM.S. Jun Gun Andrade
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________________ In अर्थ:-अर्ध भरतखंडना राजा श्रीकृष्णे आनंदपूर्वक पोताना मस्तकवडे माताना चरणोमां नमस्कार कर्यो, Io देवकीपुत्र के परंतु ते वखते दुःखथी पीडित हृदयवाळी देवकीजीने ते हकीकत ध्यानमा रही नहीं. // 6 // MP भूजानौ मयि राज्यं / मुंजाने केन निर्मितं दुःखं // मातस्तवेति विष्णुः / करौ नियोज्यावदजननीं // 6 // अर्थःत्यारे श्रीकृष्ण हाथ जोड़ीने (पोतानी) माताने कहेवा लाग्या के, हे माताजी! हुं राज्य करते छते आपने कोणे दुःख आप्यु छ ? // 61 // माताप्यवदन्निव-धे सति दुःखस्य कारणं तस्य // सामर्थ्य बिभ्राणो / भरतार्धपति हरिः प्राह // 6 // Iml. अर्थ:-आग्रहवडे पूछवाथी देवकीजीए (पोताना) ते दुःखनुं कारण कही संभळाव्युं त्यारे सामर्थ्यने धारण ID करनारा, तथा अर्ध भरतखंडना स्वामी श्रीकृष्ण बोल्या के, // 62 // माताहृदि दुःखं / वहविचरिष्याम्यहं तथा भावी // बंधुर्यथा लधीयान् / मम ते हर्षप्रपूरयिता // 6 // अर्थ:-हे माताजी! तमो हृदयमां खेद करो नहीं! हुं ए रीतनो कोइ उपाय करीश के जेथी मारो लघु ID बांधव तमारी अभिलाषा पूर्ण करनारो थशे. // 63 // प्रियवाक्यैराश्वास्य-त्युल्लास्य च मातरं निजां जिष्णुः ॥धृततध्यानः सौधं / ततः समागादथ यशस्वी SpeeeeeeeeeeDESE UBE bahrainasurs . Jun cin Aarad
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________________ R- अर्थः एरीते प्रिय वचनोथी पोतानी माताने आश्वासन आपीने, तथा आनंदित करीने ते हकीकतने ध्यानमा | देवकीपुत्रलेइते यशस्वी श्रीकृष्ण त्यांची (पोताना) मेहेलमां आव्या. // 64 // चरित्रम् // 17 // प्रातः स्नानं कृत्वा / स ततः सौधांतरात्मनः शुद्धः // कुशशय्याविनिविष्टो / ध्यानं चक्रेऽति हृष्टमनाः // - अर्थः-पछी प्रभातमा स्नान करी शुद्ध थइने ते श्रीकृष्ण पोताना मेहेलनी अंदर दर्भना संथारांपर बेसीने अतिआनंदित मनथी घ्यान धरवा लाग्या. // 65 // हरिनेगमेषिसुरवर-मुद्दिश्याष्टमतपश्च तन्वानः // ब्रह्मवतधृतचित्तः / पद्मासनसंस्थितः कृष्णः // 66 // lo अर्थ:-हरिनैगमेषी नामना उत्तम देवने उद्देशीने तेमणे अमनो तप कर्यो, तथा मनमां ब्रह्मचर्यव्रत धारण o करीने पद्मासन वारीने ते बेठा. // 66 // अथ कृष्णतपोभाग्या-कृष्टों हरिनगमेषिनामसुरः // अहनि तृतीये रात्रौ / प्रादुर्भूयेति वदतिस्म // 67 // * अर्थ:-पछी ते श्रीकृष्णना तप तथा भाग्यथी खेचायेलो ते हरिनैगमेषी देव श्रीजे दिवसे रात्रिए प्रगट थह तेमने कहेवा लाग्यों के, // 6 // विष्णो किमहं भवता / स्मृतोऽस्मि कि कार्यमार्यकास्ति तव // सद्यः कथय त्वं मे / जनार्दनाहं यथा कुर्वे mal BIGeeeeeeeeeeeeeeeea eacSEEDDESS CGeen Jun Gun Aaradi unatrasuri MS
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________________ ___ अर्थ:-हे विष्णु ! हे आर्य ! हे जनार्दन ! मने तमोए केम याद कर्यो छे ! तमारे शुं काम छ ? मने तमो तुरत देवकीपुत्र कहो ? के जेथी ते कार्य हुं करूं. // 68 // 18 // मुक्तध्यानस्तुण / विधिना सत्कृत्य यदुपतिस्तं च // लघुशुभ सहोदरं में / वितरत्वं सुरमिति प्राह // 69 अर्थ:-पछी यदुपति कृष्ण ध्यानमुक्त थइने, विधिपूर्वक ते देवनो सत्कार करीने तेने कड्यु, तमो मने एक ID मनोहर न्हानो भाइ आपो? // 69 // Joid ज्ञानोपयोगपूर्व / तमभ्यधादिति सुरोत्तमः सोऽपि // भविता सहोदरस्ते-चिरात्कनिष्टः स्फुटं सौरे 70 का अर्थ:-पछी ज्ञाननो उपयोग देइने ते उत्तम देवे पण तेमने एम का के, हे कृष्ण! प्रगट रीते थोडाज समयमा समोने न्हानो भाइ थशे.॥७॥ किंतु स तारुण्येऽपि / प्रव्रज्यां लास्यति द्रुतं विरतः॥ इति कोमलसुरवचसा / बभूव कृष्णोऽपितुष्टमनाः // ... अर्थः-परंतु ते युवावस्थामांज विरक्त थइने तुस्त दीक्षा लेशे, एवीरीतना ते देवना मधुर वचनथी श्रीकृष्ण के पण मनमो आनंदित थया.॥७१॥ बहुमानपूर्वमथ ते / सुरं विसृज्य स्वमातरं कृष्णः // कथयित्वा सुरवाक्यं / संतोषयतिस्म सपरिकरांक माSEEDEesiseESSESIDE @SSEResseeksISERE atasuri M.S. Jun Gun Aaradhi PHY
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________________ चरित्रम् देवकीपुत्र - अर्थः-पछी घणा सन्मानपूर्वक ते देवने विसर्जन करीने कृष्णे देवनुं ते वचन कहीने परिवारसहित पोतानी माताने आनंदित करी.॥७२॥ तस्मिन्नेवदिने स्व-इच्युतस्ततः कोऽपि सुकृतवान् जीवः // देवक्याः कुक्षिदरि-मलंचकारणपतिवच्च // ___ अर्थः-पछी तेज दिवसे कोइक पुण्यशाली जीव स्वर्गमाथी चवीने, सिंहनीपेठे ते देवकीजीनी कुक्षिरूपी गुफाने शोभाववा लाग्यो. // 73 // . . सिंहं स्वप्ने दृष्ट्वा / देवी वसुदेवमालपत्स्वपति॥ सोऽप्याह सर्वगुणवान् / भविता तव देवि किल पुत्रः 74 ol. 'अर्थ:-पछी स्वममा सिंहने जोइने देवकीजीए ते हकीकत पोताना स्वामी वसुदेबजीनें कही, त्यारे तेमणे पण कर्दा के, हे देवी! तमोने खरेखर सर्वगुणसंपन्न पुत्र थशे..॥ 74 // प्रासत देवकी शुभ-लग्ने पूर्णवधौ सुतं रुचिरं / गजतालुकसुकुमालं / लावण्येनेव वरमालं // 75010 .. अर्थ:-पछी संपूर्ण समये शुभ लग्नमा देवकीजीए मनोहर, हाथीना तालवासरखा सुकुमाल, तथा लानण्यवडे | - करीने मनोहर ललाटवाळा पुत्रने जन्म आप्यो. // 7 // बहुमणिसुवर्णकोटि-व्ययेन वसुदेवश्चैव तत्सुनोः // दारवतीपुरि जन्मोत्सवं गरिष्टं च विदधाते // 76 // 26eeeeeeeeeeeee ESCEBOSSESSETTE SHRI H o son urtatnasuri M.S. aciosadivalilaya n andomhaninewhindistiane mmitmentinathailan Juri Gun Adach jo e tarinakalaSIA
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________________ " अर्थः-पछी वसुदेव राजाए घणां रत्नो तथा क्रोडोगमे सोनाम्होरोथी बारिकापुरीमा ते पुत्रनो महान् of देवकीपुत्र जन्मोत्सव को. // 76 // सूतक शुद्धिं कृत्वे-कादशदिवसे समप्रबंधुजनं // संतोष्य द्वादशमे / पितरौ तस्यांगजस्य पुनः // 7 // 20 // गजसुकुमालेत्यभिधा-मतिष्टिपन केशवादयो दृष्टाः // गजतालकवत्कोमल-तया यथार्थ महैविविधैः 78 lab अर्थः-पछी अग्यारमे दिवसे सूतकशुद्धि करीने, तथा सर्व स्वजनवर्गने संतोषीने बारमे दिवसे ते पुत्रना मातापिता, / / 77 // तथा कृष्णआदिकोए आनंदित थइने, हस्तीना तालु सरखां कोमलपणाथी विविधप्रकारना महोत्सवपूर्वक तेनुं “गजसुकुमाल" एषु यथार्थ नाम पाडथु. // 78 // युग्मं // , . बाल्ये स लाल्यमानों / धात्रीभिः पंचभिः परां वृद्धिं // प्राप्तः पित्रोंः परमां / प्रीतिं चक्रे कुमारेंद्रः // 79 // ___ अर्थ-पछी बास्यपणामां पांच धावमाताओवडे लाडलडावतो ते गजसुकुमालकुमार अधिक वृद्धिने पामतो l काथको मातापिताने परम प्रीति उपजाववा लाग्यो. // 79 // . .. कलयांचक्रे काले / कलाविदः सद्गुरोः कलाः सकलाः॥मधुकर इव स कुमारः। सुकुमारो रसमिवांबुजतः / अर्थ:-पछी भ्रमर कमलमांथी जेम रसने ग्रहण करे, तेम ते सुकुमाल गज़सुकुमालकुमारे कलाभोने जाण Justa 208999888 Beeeeeeees HD
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________________ %D Неееееееееееееееее नारा सद्गुरुपासेथी सघळी कलाओनो अभ्यास कर्यो. // 8 // অফিস समवसृतः श्रीनेमिः / प्रस्तावे गिरौ च रैवतके // विज्ञपयामास तदा केशवमुयानपालवरः // 81 // - अर्थः-एवामा एक दिवसे श्रीनेमिनाथप्रभु रैवताचलपर समोसर्या, त्यारे उत्तम उद्यानपाले श्रीकृष्णने / तेनी वधामणी आपी. / / 81 // गजसुकुमालेन समं / भ्रात्रा स्नानेन विहितपूततनुः // भृषाभिः सर्वाभि-विभूषितः श्रीपतिर्मुदितः // ID पट्टगजेन्द्रस्कंधा-रूढः सेना समन्वितः प्राप / प्रौढा नेमिजिने / नंतुमना राजमार्गमथ ॥८३॥युग्मक __ अर्थः-पछी स्नानवडे शरीरने पवित्र करीने, तथा सर्व आभूषणोवडे विभूषित थइने आनंदित थयेला श्रीकृष्ण पोताना न्हानाभाइ गजसुकुमालसहित, // 82 // पट्टहस्तिना स्कंधपर बेसीने, महान् समृद्धिपूर्वक श्रीनेमिनाथप्रभुने वांदवा जवानी इच्छाथी सैन्यसहित राजमार्गमां आवी पहोंच्या.॥ 8 // युग्मं // सोमिलनाम्नास्तत्रच निवासिनः सर्ववेदविदरस्य / सोमश्रीनाम सुता / समस्ति सोमाप्रियाजाता // का अर्थ:-हवे ते नगरमा वसता, तथा सर्ववेदोना पारंगामी, एवा सोमिलनामना ब्राह्मणनी सोमानामनी स्त्रीथी l उत्पन्न धयेली सोमश्रीनामनी पुत्री छे. 16n TENaamsaceaseseDERE R Jun Gun Aaradhal 143 onalnasuri MS. Adhikarinakainsahithaustimaternationalitientistian Lahan
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________________ // 22 // 22 // कसा तारुण्यं प्राता / दधती सर्वोत्तम जंगति रूपं // स्वैर क्रीडंती कृत-शृंगारास्त्यालिभिः साकं // 85 // देवकीपुत्र ___ अर्थ:-ते कन्या यौवनवय पामीने जगतमा सर्वथी श्रेष्ट रूपने धारण करती हती, तथा सर्व शृंगार सजीने सखी- चरित्रम् ओसाथे पोतानी इच्छामुजब क्रीडा.करती हती. // 86 // IPE या ताहगुरूप-भियमेता मतनुकांतिकांतांगां // बन्धु हितेषी विष्वक्-सेनश्चेतस्यथो दध्यौ // 86 // ____ अर्थ:-तेवी मनोहर रूपलक्ष्मीवाळी, तथा अति कांतिथी दीपी निकळे शरीरवाळी, ते कन्याने जोइने, के भाइर्नु हित इच्छनारा श्रीकृष्णं पोताना मनना विचारवा लाग्या के, // 86 // 12 योग्यैषा मवन्धो-गैजसुकुमालस्य रूपगुण तुल्या // ज्ञातपितृमातृजातिः / स्वपुरुषेभ्यस्ततोऽवादीत / / ___अर्थः-रूप अने गुगोथी तुल्य एवी आ कन्या मारा आ गजसुकुमाल भाइने परणाववा योग्य छे. पछी पोताना माणसो पासेंथी तेणीना मातापितानी जाति जाण्याबाद तेणे (ते माणसोने) कम्युं के, // 87 // lo भो भद्रा गत्वा धन-कोटीदानेन सोमिलं विप्रं // संतोष्यार्थयत. कनी-मैनां मेऽनुजवरस्थाथें // ano अर्थ है भद्रो! तमो जइने क्रोड द्रव्यना दानथी सोमिलब्राह्मणने खुशी करीने म्हारा आ न्हाना भाइ गजसुकुमालने परणाववा माटें आ कन्यानी मागणी करो.॥८॥ SSCCCCCASSOCCccess aekCCCCCCESESEG Jun Gun Aaradhak hatnasun MS
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________________ चरित्रम् देवकीपक स्थापयत ततस्तदनु-ज्ञया कनी तौ च सारशृंगारां // कन्यांतःपुरमध्ये कृतविश्वासी प्रियसखोभिः // 8 // ___ अर्थ:-अने पछी तेनी रजा मेळव्यावाद उत्तम शृंगारवाळी, तथा तेनी प्रिय सखीओसाथे तेणीने विश्वासमा का " लेइने तेणीने कन्याओना अंतःपुरमा राखजो? // 8 // इत्यादिश्य मुरारिः / कन्याशिक्षामिमां प्रदाय पुनः // समवर्ति गत्वाशु / जिनोपदेशं शृणोतिस्म 90 _ अर्थः-परीते ( पोताना माणसोने ) हुकम करीने, तथा फरीने ते कन्यामाटेनी तेओने भलामण आपीने, श्रीकृष्ण तुरत समवसरणमां जइने प्रभुनो उपदेश सांभळवा लाग्या. // 9 // भवजलनिधावपारे / भो भव्या नरकदायिं विषयजले // व्याधिक्षार विपाके / मोहग्राहौघपरिपूर्णे // 21 // संकल्पानल्पलुल-कल्लोलभरे भवेत्परित्राण // चारित्रयानपात्रं / विना निपततां नृणां नैव ॥९२॥युग्म अर्थ:-हे भव्यलोको! नरक आपनारा विषयोरूपी जलवाळा, रोगोरूपी खारना विपाकवाळा, तथा मोहरूपी मगरोमा समूहथी भरेला, // 91 // तथा अनेक संकल्पीरूपी उछळता मोजांओना.समूहवाळा आ संसाररूपी अपार महासागरमां पडेला मनुष्योने चारित्ररूपी वहाणविना कोइ पण रक्षण करी शकतुं नथी.॥१२॥ विषयाः किंपाकफलो-पमा वपुः श्रोविनश्वरा विफला // श्रीः सर्वाः स्वजनानां / भावियोगाश्च संयोगाः SECCCCCCCCCCG *93eeeseesaavoBeebie Jun Gun Aaradhik dauncatnaslin M.S. . Ram
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________________ मारकाधारल्याचा MO.94 - अर्थ-(इंद्रियोना) विषयो किंपाकफलसरखा छे, शरीरनी शोभा क्षणभंगुर छे, लक्ष्मी निष्फल छे, स्वजनोना सर्व संयोगो भविष्यमां वियोगवाळा छे. // 93 // संसारे भ्रांतिरहो / विषमं कर्मात्मनेव भोक्तव्यं // इति मोक्षसुखावाप्तौ / स्पष्टं कुरुतोद्यम भव्याः 94 / / I.. अर्थः-अहो ! संसारमा केवल भ्रांतिज छे, विषम कर्म आत्मानेज भोगवg पडे छे, माटे हे भव्यजनो। मोक्षसुख मेळववामाटे तमो स्पष्टपणे उद्यम करो. // 14 // भावितचित्ताः सर्वे / सभाजना जिनवरोपदेशेन // जाताः संतो निजनिज-निलयमगुर्गलित भवरागाः // अर्थ:-(ए रीतना) प्रभुना उपदेशवडे करीने भावित हृदयवाळा, तथा संसारथी वैराग्य पाम्याथका सभाना लोको पोतपोताने घेर गया. // 15 // चारित्रमोहनीय-क्षयेण सविशेषमेषु बुद्धात्मा // गंजसुकुमालोऽर्हतं / नत्वैवं विज्ञपयतिस्म // 96 // अर्थ:-तेओमां विशेषपणे प्रतिबोध पमेलो छे आत्मा जेनो, एवो गजसुकुमाल चारित्रमोहनीय कर्मना क्षयथी प्रभुने चांदीने एम विनववा लाग्यो के, // 96 // मातृपितृशौरिमु-ख्यान् स्वजनानाएछय यावदायामि व्रतमादातुं तावत् / स्थातव्यमिह स्वया स्वामिन का SESSISCCCCCESS CCESTE पाराम NaID
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________________ 25 // देवकीपुत्र | अर्थ:-हे स्वामि ! मातापिता तथा श्रीकृष्णआदिक स्वजनोनी रजा लेइने जेटलामा हुं व्रत लेवामाटे पाछो चरित्रम् आयुं, त्यांसुधी आपसाहेबे अहींज रहे. // 97 // MD गजसुकुमालश्चवं / स्वामिनमानम्य गेहमागत्य // नत्वापित्रावेवं / नियोज्य पाणी च वदतिस्म // 98 // 6 // ___ अर्थः-एम (कहीने ) ते गजसुकुमाल प्रभुने वांदीने, तथा घेर आवीने, अने मातापिताने नमीने, हाथ जोडी * एम कहेवा लाग्या के, // 98 // सद्यः प्रदीयतां मे-ऽनुमति पितरौ प्रसादमाधाय // गृह्णाम्यहं तपस्यां / यतश्च श्रीनेमिजिनपावें // 19 // अर्थ:-हे मातापिताजी कृपा करीने मने तुरत अनुज्ञा आपों ? के जेथी हुँ श्रीनेमिनाथप्रभुपासे दीक्षा लेउ.॥ श्रुत्वैतत्पुत्रवचो / वियोगवनवृद्धिजलधरप्रतिमं // अंतः खेदममंदं / दधतीदं देवकी प्राह // 10 // ___ अर्थ:-वियोगरूपी वननी वृद्धि करवामां मेघसरखां, एरीतनां पुत्रना वचनने सांभळीने मना अत्यंत खेदने धारण करतांथकां देवकीजी एम बोल्यां के, // 10 // ID गुणरत्नाकर निजकुल-कमलदिवाकर वरेण्य रूपभर // पित्रोभक्तोऽपि भवान् / किमीदृशं वक्तिरुक्षवचः I ... अर्थ:-हे गुणोना महासागर ! हे आपणा कुलरूपी कमलने विकस्वर करवामां सूर्यसरखा ! तथा हे उत्तम I ntalnasuri MS Jun Gun Kanada SECCCCCCCCCCCCCES areCCCESeetSSESEI A u tomodinakM anuMAILatestrianaravaadanita............. AAN neinindmeritaithalive
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________________ क रूपना समूहवाळा ! तुं मातापितानो भक्त थइने पण आतुं कक्षवचन केम बोले छे ? // 1 // देवकीपुत्र प्रियजीवितं मम त्वं / निदोषमलंकृतिस्तथााजीवं // प्रेमनिधिस्तीर्थ मे / स्वमेव बहु चरिम किं पुत्र. 3 // 26 // * अर्थ:-हे पुत्र ! तुं मारा प्रिय जिवनरूप छो, तेमज छेक जीवितपर्यंत दूषणरहित अलंकाररूप छो, प्रेमना निधानरूप छो, तथा सुंज मने तीर्थरूप छो, वधारे शुकहुं ? // 2 // ID भोगान् भुंजानेऽथो-त्वयि पुत्र स्वगृहसारश्रृंगारे // मन्ये पुत्रवत्तीषु / स्वं धन्य स्त्रीषु कृतकृत्यां // 3 // O अर्थ:-हे पुत्र ! मारा घरनो उत्तम शृंगारभूत एवोतुं ज्यारे हवे भौगो भोगवीश, त्यारे है पुत्रवती स्त्रीओमा मने पोताने भाग्यशाली तथा कृतार्थ मानीश. // 3 // आ तारुण्यं तस्मात् / कृत्वा कारुण्यममलमंबायां // विषयसुखं भुंक्ष्व जरा-वाप्तौ त्वं लाहि चारित्रं // ___अर्थ-पाटे मातार निर्मल करुणा लावीने यौवनवयसुधी तु विषयसुख भोगव ? अने वृद्धावस्था आयेथी। तुं चारित्र ग्रहण करजे. // 4 // इत्याकुलचित्तायाः। श्रुत्वा मातुर्वचोभरं स्थिरधीः // गजसुकुमालः कोमल-वाक्यमवादीदिति क्षिप्रं 5 अर्थ:-परीते व्याकुलहृदयवाळी पोतानी माताना वचनीनो समूह सांभळीने स्थिर बुद्धिाळा गजसुकुमाल Jun Sun Aaradhatola BBBBBBBB660688eeee I6SSSSSSSSSSSSSSS supratntisuniM.S..
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________________ देवकीपत्र तुरत निचेमुजब मधुर वचन बोल्या // 5 // .. चरित्रम् मातः शृणुशरदंभो-धरनिभमायुश्चलाः पुनः कमलाः // यौवनलीलापि.तथा। मत्तगजश्रवणयुगचपला 6 // 27 // अर्थ:-हे माताजी? आप सामळो ? आयु शरदऋतुना मेघसरखु क्षणभंगुर छे, वळी लक्ष्मी पण चञ्चल तेमज योवननी क्रीडा पण मदोन्मत्त हाथीमा बन्ने कोनीपेठे चपल छ.।। 6 // * केवलदुःखागारे / संसारे शिवसुखार्थिनां मातः // निवसनमयुक्तमुक्तं / हितैषिभिर्नुनमहद्भिः // 7 // In अर्थ:-माटे हे माताजी! मोक्षसुखना इच्छकोमाटे केवल दु:खोनी खाणसरखा आ संसारमा बसवार्नु loखरेखर हितेच्छु तीर्थकरोए अयोग्य कहेलुं छे. // 7 // एवमनुनीय मातर-मथो ब्रतार्थी जनार्दमोपतिं / / गत्वा गजसुकुमालः / स्वस्यावादीच्चरणबाती HL: अर्थ:-परीते माताने समजावीने, दीक्षाना इच्छक एवा ते गजसुकुमाले श्रीकृष्णपासे जइने पोतानी दीक्षा लेवानी हकीकत कही संमळावी. // 8 // प्रेम्णालिग्य निविश्या-सनेऽनुजंत जगाविति क्षिप्रं व्रतवार्तयातिदुःखात् / स्वजनसमक्षं च मधुमथनको / अर्थ:-यारे श्रीकृष्ण पोलाना ते न्हाना भाइने प्रेमथी भेटीने, तथा आसनपर ताडीने, व्रत लेवानी वार्ताथी| F u nratnasuriti.s. SUCCESEEEEEEOSBEE Jun Gun Aaradha .....
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________________ अतिदुःखित थइने तुरत स्वजनोनी समक्ष तेने कह्यु के, // 9 // देवकात्र वत्स त्वं व्रतवार्ता / विमुञ्च भोगान् भंगुरान् भुंव // तारुण्येऽस्मिन्नधुना / प्राज्यं राज्यं समादाय one चरित्रम् 28 // अर्थ:-हे वत्स ! तुं आ युवावस्थामा हमणां दीक्षानी वात तजी दे ? अने मनोहर राज्य ग्रहण करीने अवि- // 28 // |च्छिन्नपणे भोगो भोगव? // 10 // सस्नेहमसौ हरिणा / प्रकाममभ्यर्थितोऽपि दृढचित्तः // बतभावं नामुंचत् / ततो हरिः प्राह गलदश्रुः 11 अर्थ:-एरीते श्रीकृष्णे प्रेमपूर्वक तेनी घणी प्रार्थना कर्या छतां पण दृढ हृदयवाळा ते गजसुकुमाले दीक्षानो भाव तज्यो नही, त्यारे श्रीकृष्ण (आंखोमां) आंसु लावी बोल्या के, // 11 // ... वत्सवयं वांछाम-स्तवैकदिनमेव राज्यभोगमपि // दृष्टुं स्पष्टं योगं / गृह्णीयाः सत्वरं तदनु // 11 // o अर्थ:-हे वत्स ! तारा फक्त एक दिवसनाज राज्यभोगने पण स्पष्टपणे जोवाने अमो इच्छिएछीए, त्यारवाद ! तुरत चारित्र ग्रहण करजे? // 11 // प्रीयंतामित्येते / स्तोकविलम्वादलं तु कृतमौने // गजसुकुमाले शौरिः / स्वजनानाकार्य तत्कालं // 12 // .. अर्थः-थोडा समयना विलंबधी भले आ लोको राजी थाओ ? एम विचारी गजसुकुमाल मौन रहेवाथी, तेज Juri con Adriana Beesseese eleeeeeeeeeeee CeCeele
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________________ क चरित्रम् वखते श्रीकृष्णे सर्व स्वजनोने बोलाव्या, // 12 // 0 अभिषेकविधि कृत्वा / बन्धो राज्ये निवेशनं चक्रे // महता महेन विष्णुः / प्रीतः संगीतविधिपूर्व // 13nal : अर्थ:-पछी श्रीकृष्ण आनंदित थइने महोटा उत्सवपूर्वक ते भाइनो अभिषेकविधि करीने, संगीतोना नादस- ID हित तेमने राज्यासने बेसाडवानी क्रिया करी. // 13 // ! प्रातर्दिने द्वितीये / गजसुकुमालः समग्रबन्धुजनं // संतोष्यवं हरिकृत-महपूर्व नेमिजिनपावे // 14 // क गत्वाथपंचमौष्टिक-लोचं कृत्वाग्रहीद व्रतं विधिना // अनुमोदनां वितन्वं-स्ततो हरिः प्राप निजभवनं // - अर्थः-एरीते सर्व स्वजनोने खुशी करीने बीजे दिवसे प्रभातमां ते गजसुकुमाले श्रीकृष्ण करेला महोत्सवपूर्वक श्रीनेमिप्रभुपासे जइने, तथा पंचमुष्टि लोच करीने विधिपूर्वक चारित्र ग्रहण कयु. पछी श्रीकृष्ण तेमनी अनुमोदना करताथका: पोताने घेर गया. // युग्मं / / .. श्रीमन्नेमिजिनेंद्रं / गजसुकुमालं मुनि प्रणम्याथ // वसुदेवाया पितरः / प्रापुगेंहं मुदितचित्ताः // 16 // o अर्थः पछी वसुदेवादिक पितृवर्ग श्रीमान् नेमीश्वरप्रभुने, तथा गजसुकुमाल मुनिने वांदीने मनमां आनंद के पामतोधको घेर गयो.॥१६॥.. .. .. ... ...., RECCESSESSIS Qeee SCCCCCE Jun Gun Aaradhi SunratnasuriM.S.
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________________ देवकीपुत्र BCCCCCCCCCCCCCCCEle गजसुकुमालश्चरण-ग्रहणाहन्येव नेमिमानम्य // संयोज्य करावे / विज्ञप्तिमिति च तनोतिस्म // 17 // अर्थः-पछी ते चारित्र लेवाने दिवसेज, अर्थात् पेहेला दिवसे ते गजसुकुमालमुनि श्रीनेमिनाथप्रभुने वांदीने * तथा ( पोताना) बन्ने हाथ जोडीने एम विनंति करवा लाग्या के, // 17 // त्वदनज्ञयाश्मशाने / निर्जरितुं पूर्वजन्मकर्माणि // गत्वा कायोत्सर्ग / करोमि शुऊन भावेन // 18 // ___अर्थः-हे भगवन् ! आपनी अनुज्ञाथी पूर्वजन्मना कर्मो खपाववामाटे आजे श्मशानमा जइने शुद्धभावी हुँ कायोत्सर्ग करुं // 18 // स्वैरमनुतिष्ट साधो / त्वमिति प्रोक्ते जिनेश्वरेण ततः // समवसरणभूमे ग् / विनियो नेमिमानम्य // . अर्थ मने ! तमो तमारी इच्छामुजव करो? एम जिनेश्वरप्रभुए कह्याथी, ते गजसुकुमालमुनि तुरतज प्रभुने नमीने ते समवसरणनी भूमिमांथी निकळी गया. // 19 // आगादथ श्मशानं / पादे पादे ज्ज्वलच्चितानातं // क्रीडद्भुतप्रेतं / गजलकुमालर्षिरतनुशवं // 20 // का अर्थ:-पछी ते गजसुकुमालमुनि, ज्यां पगले पगले चिताओनो समूह सळगी स्यो छे, ज्यां भूतो अने तो क्रीडा करी रया छ, तथा घणा मुडदाओ पडेला छे, एवां ते श्मशानमां आव्या. // 20 // RSESEeeeeeeESESEX GunratnasunMS. ANTRA Jun Gun Aaradh
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________________ परिचय // 31 // देवकीपुत्र के मुनिशोंडीरः स्थंडिल-भूमि प्रतिलिख्य तत्र तस्थौ द्रार // मेरुगिरिस्थिरचित्तः / कायोत्सर्गे क्षमागारः ___ अर्थ:-मुनिओमां महाशरवीर, मेरुपर्वतनी पेठे स्थिर मनवाळा, तथा क्षमाना भंडारसरखा ते मुनि त्यां शुद्ध भूमिप्रतिलेखिने कायोत्सर्गध्यानमा रया. // 21 // . . नासान्यस्ताक्षयुगः / स्वजानुलंबितभुजद्वयः स्वमनः // संस्थाप्य स्थिरमात्मनि / यावत्तस्थौ स मुनिराजः। ol अर्थः-नाशिकातरफ राखेल छे बन्ने चक्षुओ जेमणे, पोताना घुटणसुधी लंबावेल के बन्ने हाथ जेओए एवा के ते गजसुकुमालमुनिराज आत्मामां मनने स्थिर राखीने जेवामा उभा छे, // 22 // . . तावत्समितकुशग्रह-हेतोः पुर्या विनिर्गतः पूर्व // तेनावना विकाले / सोमिलभट्टः स्फुट क्रोधी // 23 // ____ अर्थ-एयामा प्रथम संध्याकाळे ( यज्ञमाटे) काष्टो तथा दर्भ लेवामाटे ते सोमिलभ ते मार्गथी निकन्यो, अने प्रगटपणे क्रोधायमान थयो. // 23 // गजसुकुमालमुनीशं / प्रतिमास्थं दूरतो ददर्श ततः॥ उपलक्ष्य कोपकंप्रो / व्यचिंतयच्चैष मनसोति 24 ___ अर्थ:-पछी कायोत्सर्गध्यानमा रहेला ते गजसुकुमालमुनींद्रने तेणे दूरथी जोया, अने ओळख्यावाद क्रोधी 10 कंपतोथको ते ब्राह्मण पोताना मनमा एम चितववा लाग्यो के, // 24 // еееееееееееееееее आCeeeeeeeeeee unpatnasur M.S. Jun Gun Aaradnak DM
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________________ // 32 // हा तत्याज नवोढां / निदोषां मम सुतामसौ दुष्टः // दुष्टत्वमस्य सयो / मूर्ध्नि ततः पातयाम्यस्य // 25 // देवकीपुत्र अर्थ:-अरेरे ! आ दुष्टे नवी परणेली मारी निर्दोष पुत्रीनो त्याग कर्यो छे, माटे हवे तुरतज ते दुष्टपणुं तेनाज चरित्रम् मस्तकपर ना. // 25 // ... | निर्मानुषतां परितो। विभाव्य सर्वादिशो विलोक्य ततः // सरसस्तोरात् तरसा-मादाय समृतिका तूर्ण // ___ अर्थ:-पछी सर्व दिशाओ तरफ जोइने, आसपास कोई पण मनुष्यने नही जोवाथीं, ते दुष्ट तुरत तळावने (D) b कांठेथी भीनी माटी लाव्यो. // 26 // 2 गजसुकुमालस्य मुने-बंध पालिं च मूर्ध्नि सद्वृत्तां // पूरयतिस्म ततोऽसौ / तां पालिं खादिरांगारेः 27 12 o अर्थः-पछी ते दुष्टे ते गजसुकुमालमुनिना मस्तकपर ते माटीवडे गोळाकारनी पाळ बांधी,, अने ते पाळमा वळता खेरना अंगारा भर्या // 27 // | स कूरः कृत्वैवं / पलायतेस्माशु जातशौरिभयः // स्वत एव महापापोः / पुरुषास्त्रस्यति सर्वत्र // 28 // 1 ID अर्थः-एम करीने श्रीकृष्णनो भय लागवाथी ते दुष्ट त्यांची तुरत नाशी गयो. केमके महापापी पुरुषो जगोए पोतानीमेळेज भय पाम्या करे छे.॥२८॥ Jury Gun Saradha महडseeesSESE Eeeeeeeseseas SIDESI P . " HTupratnasuri M.S...
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________________ देवकीपुत्र ज्वलति क्षीरोदकवत् / सुकुमाले मूभिखादिरांगारैः // गजसुकुमालर्षिरिति-स्थिरसंवेगःस्म चिंतयति 29 // // 33 // . अर्थः-पछी ते खेरना बळता अंगाराओवडे क्षीरोदकनीपेठे सुकुमाल मस्तक वळती वेळाये स्थिर वैराग्यवाळा ! // 33 // ते गजसुकुमालमुनि एम चिंतवे छे के, // 29 // भवताव्यसयतारे / नरकगतो जीव वहिसंतापः॥ प्रागर्जितदुःकर्मभि-रतिगुरुको भयप्रदो भरिपा // 30 // ___ अर्थ:-अरे ! जीव ! पूर्वे बांधेलां दुष्कर्मोवडे ते नरकगतिमा घणीघणी रीते अति भयंकर अग्निनो अतिID महान् ताप सहन करेलो छे. // 30 // o तप्तत्रपुजलपाने-रग्निमयायःसुपुत्रिकाश्लेषैः // बहुशस्तप्तोऽसि त्वं / कियदेतज्जीव तत्पुरतः // 31 // अर्थः-वळी हे जीव! (ल्यां नरकमा तपावेला सिसाना, रसपानथी तथा अग्निमय लोखंडनी पुतळीनाआलिंगनोथी .जे घणीवार तपेलो छो, तेनी आगळ आं ताप शा हिसावमा छे ? // 31 // .... पश्चादपि देहे त्वं / नूनं चालिंग्यसेऽनलैस्तप्तः // भवहेतुकर्मराशे-भश्मीभवनं प्रशस्यतरं // 32 // ___ अर्थः-पाछळथी पण खरेखर तारां शरीरने बळतो अग्निज स्पर्श करवानो के, तो पछी संसारना कारणरूपक ID कोना समूहर्नु भश्मीभूत थर्बु वधारे सारं छे. // 33 // ......... Essesseeeesereles SCSCCCORRESERSEE Jun Gin Aarad na MS
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________________ // 34 // एतत्कायममत्वं / त्यज जीव प्रशमनं च हृदि कृत्वा // प्रतिमास्थ एव धर्म-ध्याने दृढतां भजस्वपरां // देवकीपुत्र __ अर्थः-अरे जीव / हृदयमा शांति राखीने तुं ओं शरीरंनी ममतानी त्याग कर ? अने कायोत्सर्गारहीने धर्म चरित्रम् * ध्यानमाज अति दृढपणु धारण कर ? // 33 // एवं प्रवर्धमान-ध्यानक्षपिसात्मकर्ममलराशिः॥ ज्ञान केवलमाप्य / प्राप्तोऽऽसौ शाश्वतं स्थानं // 34 // म अर्थ:-रीते वृद्धिपामा शुभध्यानवडे करीने कोरूपी मेलनी समूहने नष्ट करीम, तथा केवलज्ञान पामीने ते गजसुकुमालमुनि शाश्वत स्थान (मोक्षने) प्राप्त थया:-३५॥ शिवगमनेऽस्य चकार-सन्नसुरौधो हितत्र महिमानं // अतिसुरभि पुष्पवस्त्रे-वैषणसंगीतवादिनः // अर्थ-दरीत तेमनु मोक्षगमन थाथी नजदीकमा रहेला देवोना समूहे त्या अतिसुगंधि पुष्पो, तथा वस्त्रोनों न fol, वरसाद, संगीत तथा वाजिनीवडे महिमा कर्योः // 36 // . गजकमालमुनीश्वर-वेदनरसभरविवर्धितोत्साहः // प्रातः सपरीवारः / समवसृति केशवोऽचालीत् 36 ....अर्थ:-पछी प्रभाते ते गजसुकुमालमुनिश्वरने वांदवानों रसना समूहथीं वृद्धि पामेल छै उत्साह जेनो, एवा ते श्रीकृष्ण परिवारसहित (प्रभुना) समनसरणतरफ चाल्या. // 6 // TREESESES
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________________ // 35 // देवकीपुत्र अतिकृशदेहं जैरयां / जीण कैचिन्नरं ददर्श पथि / / महदिष्टिकाभरेण-श्वासभरव्याचमुखविवरं // 37 // चरित्रम् ... अर्थ:-एवामा ते श्रीकृष्णे मार्गमा अति कृशशरीरवाळा, जराथी जर्जरीत धयेला, तथा (पोते उपाडेला) इंटोना / महोटा समूहथी चडेला श्वासनेलीधे खुल्लुं थइ गयेलं छे मुखरूपी विवर जैनु, एवा कोइक पुरुषने जोयो. // 7 // एकेकामादाये-ष्टिकां पतंती ततः स्खलत्पादः // श्रांतोऽसौ च निषण्णः / पथ्येव तद्भारमुन्मुच्य // 38 // ___ अर्थ-पछी पंगै लथडवाथी पंडीजती एककी इंटने लेतीथको थाकी जवाथी ते पुरुष मार्गमाज ते इंटोसो भारो मूकीने बेसी गयी.॥३४ | संजातकृपस्तं प्रति / श्रीमान् पुरुषोत्तमः स्वहस्तेन // लात्वेष्टिकां मुमोच / क्षिप्रं गेहांगणे तस्य // 39 // अर्थ-वारे तैनापर दया आँववाथी श्रीमान् कृष्ण पीताने हाथे तेमाथी एक ईंट लेडने तुरत ते पुरुषना घरना Iol युगपत्सर्वेऽपिजना / मुमुचुस्ता इष्टिकास्ततो हृष्टाः // एकैको तावदगा-निष्टां द्रागिष्टिकाराशिः // 40 // 0 अर्थ-पछी कृष्णनी (साथ चालता) सर्व माणसोए खुशी पहने एकीहारे लेनी एकेकी इंट उपाठीने ते माणसना ऑगणामां मूकीदीधी, अने एरीते ते इंटोनी इगलो सुरतज खलास यह गयो.॥४७॥ unratnasur MS BRREBEEEEEEEEE GeE332399beeele Jun Gun Aaradhu
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________________ चरित्रम् हृष्टोऽथो दनुजारी-स्ततः समागत्य समवसरणभुवं / जिनमानम्यात्मदृशं / ददौ मुदा: साधुवरपंक्तौ देवकीपुत्र ___ अर्थः-पछी आनंदित थयेला ते श्रीकृष्णसमवसरणमां आवीने, तथा प्रभुने वांदीने हर्षथी उत्तम साधुओनी. श्रेणी तरफ दृष्टि करवा लाग्या // 41 // गजसुकुमालमपश्यन् / मुनीश्वरं निजसहोदरं शौरिः // किंचिच्चक्तिश्चित्ते / जिनेश्वरं प्रांजलिः प्रोचे // 4 // .. अर्थः-परंतु त्या पोताना भाइ एवा ते गजसुकुमालमुनिने नहीं जोवाथी मनमां कईक चकीत थयेला श्रीMool कृष्णे हाथजोडीने प्रभुने पूछयु के, // 42 // यः प्रवजितः स्वामिन्। कमेऽनुजः सकलसाधुतिलकसमः // इत्युदिते भगवानपि / जगाद संदेहवनवतिः 10 अर्थ:-हे स्वामीन् ! सर्व साधुओमां तिलकसमान, अने गइ कालेज जेमणे दीक्षा लीघेली छे, एवा ते महारा eceDESSEE // 6 // SECSSESite Iccelec886GSSSB प्रभुपण बोल्या के, // 43 // शौरे शृणु साधुरयं / गत्वा यः पितृवनं महाघोर // कायोत्सर्गे सायं / स्थितोऽस्मदादेशतस्तुणे // 4 // . अर्थ:-हे कृष्ण ! तमो सांभळो? ते मुनि गइकालेज अतिभयंकर श्मशानमा संध्याकाळे जइने अमारा आदेशमुजब तुरत कायोत्सर्मध्यानमां स्थिर स्था. // 44 // . Jun Gum Aatach
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________________ कोऽपि पुमांस्तं दृष्ट्वा / चुकोपेत्यादि सकल वृत्तांतं // मोक्षगमनं यावत् / सद्यस्तं व्याजहार जिनः // 45 देवकीपुत्र अर्थः-एवामां कोइक पुरुष तेमने जोइने क्रोधातुर थयो, इत्यादि छेक तेमना मोक्षगमनसुधीनो सर्व वृत्तांत // 37 // प्रभुए तेमने तुरत कही संभळाव्यो. // 45 / ' तेनेवं मुनिना भाव-वेरिभिः सह युध्यता / संसाधितोऽस्तिवीरेणा-स्मीयोऽर्थः शुभभावतः // 46 // ____ अर्थः-परीते ते शूरवीर साधुए भावशत्रुओ साथे युद्ध करीने शुभपरिणामथी पोतानो स्वार्थ साधी लीधो छे. 46 / / lan कंसारिस्तदवचनं / स्फुटं समाकर्ण्य कर्णयुगकटुकं // भृकुटि विकृतां कृत्वा / ललाट देशे जिनं प्राह II YO अर्थ:-परीते बन्ने कर्णोने कडवु लागे एबुं प्रगटरीते प्रभुतुं वचन सांभळीने ललाटपर भयंकर भृकुटी चडावीने 10 श्रीकृष्ण प्रभुने पूछवा लाग्या के, // 47 // IR कोऽयं नराधमोर्हन् / शिरोमणिः पापकारिणां स्वामिन् // मम बंधोश्च निहंता / भविता गतिथिः कृतांतस्या। In अर्थ:-हे भगवन् ! हे स्वामिन् ! म्हारा ते भाइने मारनारो पापीओनो शिरोमणि एवो ते अधम पुरुष Hos कोण छ ? खरेखर ते यमनो अतिथि थवानो छे. // 48 // o मा कुरु कोपं तस्मि-नरिसुकुमाले जिनोऽवगिति सयः // तव बंधोः साहाय्यं / तेन कृतं गच्छतो मुक्ति SUGACCESSESESEReal P unratnasur MS Jun Gun Aaradtial
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________________ sec@@@@ अर्थ:-त्यारे प्रभुए तुरतज श्रीकृष्णने का के, हे कृष्ण तमो ते बिचारा रोकडा सुकुमाल शत्रुपर कोपन वकीपुत्र करो ? केमके तेणेतो मोक्षमा जता एवा तमारा ते भाइने सहाय करेल है. // 49 // तपसाग्न्युप्रेण चिगत् / क्षिपति कर्माणि संचितानि भवैः // तरसांनिध्यात्तेन-क्षितानि मुहूर्तमात्रेण 50 // 34 // on अर्थ: अग्निसरखा भयंकर तपथी पण पूर्वभवमां संचित करेला जे जे कर्मो घणे काळे क्षय थात, ते / / कर्मोने ते गजसुकुमालमुनिए ते पुरुषनी सहायथी फक्त एक मुहुर्तमांज क्षीण करी नाख्यां छे. // 50 // शौरिरुवाच जिनेंद्रं / प्रोक्ता भवताऽपराधिनोऽपि गुणाः // मधुशर्करागुडः खल्लु। स्वबंधभंगेऽथ जलमखिलं : अर्थः-यारे श्रीकृष्ण भगवानने को के, हे भगवन् ! आपे एम कणु के, ते अपराधी पुरुषयी पण गज-* सुकुमालमुनिने तो गुणज थयो छे, केमके मध, साकर अथवा गोळ पोतपोताना बांधानो भंग थयावाद, ते सपळा जलरूपज.थाय छे. // 51 // ......... ID परमेषः खलुपोपी / मयोपलक्षणीयः कथं नाथ // इत्युदितः सुव्यक्त / पुरुषोत्तममेवमाह जिनः // 52 // अर्थः परंतु हे स्वामी ! खरेखर मारे ते पापीने केम ओळखबो ? एम श्रीकृष्णे पूछवाथी प्रभुए तेमने प्रगटपणे एम का के, // 52 // , ICE SSEECHE Eleesa Gunratolasun M.S.... Jun Gun Marathi .
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________________ 39 देवकीपुत्र के विष्णो शृणु यस्त्वांकिल।विशंतमालोक्य निजपुरी नूनं ॥मृत्युमाप्स्यति सिरसः। स्फोटा दुर्ध्वस्थ एव भयात् / चरित्रम् ..... अर्थः-हे .कृष्ण तमो सांभको ? जे माणस खरेखर तमोने, तमारी नगरीमा प्रवेश करता जोहने भयथी की " मस्तक फूटी जवाथी उभो उभोज मृत्यु पामशे, // 13 // निकोपचेतसासौ / बंधूपद्रवकरः स विज्ञेयः // भवतैवं श्रुत्वाह-द्वाक्यं निसंशयं मन्वन् // 54 // ___ अर्थः-तेने तारे तारा भाइने उपद्रव करनारी जाणवो, परंतु तारे तेनापर कोप करवो नहीं एरीतर्नु प्रभुनु Iin वचन सांभळीने ते वचनने ते संदेहरहित मानवा लाग्या. // 54 // .. . नवेशं प्रावर्तत / गंतुं स्वपुरी जनार्दनः सद्यः / सोमिलभट्टस्ताव-दध्याविति गृहगतः प्रातः // 55 // अर्थः-पछी श्रीकृष्ण प्रभुने वांदीने तुरत पोतानी नगरीप्रते जवा लाग्या, हवे एवामा ते सोमिलभट्ट घेर जइने , TEEecesseeeeeese SCCCCCCCESSOCCEE ol हा श्रीनेमि नंतुं / गतोऽस्ति संप्रति हरिस्तत्र / कथितं सर्वविदामे / भाव्येतत्कर्म खलु नियं // 56 // ___ अर्थ:-अरेरे ! हमणाज श्रीकृष्ण श्रीनेमिनाथप्रभुने चांदवाने त्या समवसरणमां गया छे, अने ते सर्वज्ञप्रभु की खरेखर आ माझं दुराचरण तमने कही देशे. ABJunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradh
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________________ चरित्रम - yo // ७५तन्नो जाने कुपितः / कैारारयिष्यति मांच हरिः॥ तत् क च यामीदानीं / सद्यो नस्यामि कुत्र हहा // अर्थ:-अने तेथीते विष्णु क्रोधपामीने मने कया मारथी मारशे? तेनी मने खबर पडती नथी, माटे हवे क्या जाउं ? अरेरे ! हुं हवे तुरत क्यां नाशी जाउँ ? // 57 // Jio अंतः संतापभरं / वहन्नयं पापकर्मणा न धृति // लेभेयुविदप्येवं / स्वयमेव विषान्नभोजीव // 5 // ____ अर्थः-एरीते पापकार्य करवाधी मनमा संतापना समृहने धारण करतो एवो ते सोमीलभट्ट पोते ज्योतिषी का * छतां पण जाणे झेरवाळु अनाज खाधुं होयं नहीं ? तेम चेन पाम्यो नहीं. // 58 // Folls स्वगृहानिर्गत्य समा-रेभे गंतुं स राजपथिमूढः // पश्यस्तिर्यग् भोत-स्तरलदृशा चोर इव लोकान् // 19 // ___ अर्थः-पछी ते पोताना घरमांथी निकळीने दिग्मूढ थयोथको चोरनीपेठे डरीने चपल आंखोवडे लोकोतरफ तीछी नजरे जोतोथको राजमार्गमा चालवा लाग्यो. // 59 // समुख एव प्राप्त-स्तावत्सेनान्वितः सदैत्यारिः // भयभीतोऽभूद्विप्रः / स दृष्टामात्रे हि कंसारौ // 6 // lol अर्थ:-एवामा ते श्रीकृष्ण सैन्यसहित तेने सामा मळ्या, अने तेमने जोतांज ते सोमिलभ भयभीत थयो. 0 0 EleseseESSESSESESEN Serving Jin Shasan 050150 gyanmandir@kobatirth.org CEBSCCCCCCESSESE SONGuncatuasuriM.S. ADS