________________ देवकीपुत्र ज्वलति क्षीरोदकवत् / सुकुमाले मूभिखादिरांगारैः // गजसुकुमालर्षिरिति-स्थिरसंवेगःस्म चिंतयति 29 // // 33 // . अर्थः-पछी ते खेरना बळता अंगाराओवडे क्षीरोदकनीपेठे सुकुमाल मस्तक वळती वेळाये स्थिर वैराग्यवाळा ! // 33 // ते गजसुकुमालमुनि एम चिंतवे छे के, // 29 // भवताव्यसयतारे / नरकगतो जीव वहिसंतापः॥ प्रागर्जितदुःकर्मभि-रतिगुरुको भयप्रदो भरिपा // 30 // ___ अर्थ:-अरे ! जीव ! पूर्वे बांधेलां दुष्कर्मोवडे ते नरकगतिमा घणीघणी रीते अति भयंकर अग्निनो अतिID महान् ताप सहन करेलो छे. // 30 // o तप्तत्रपुजलपाने-रग्निमयायःसुपुत्रिकाश्लेषैः // बहुशस्तप्तोऽसि त्वं / कियदेतज्जीव तत्पुरतः // 31 // अर्थः-वळी हे जीव! (ल्यां नरकमा तपावेला सिसाना, रसपानथी तथा अग्निमय लोखंडनी पुतळीनाआलिंगनोथी .जे घणीवार तपेलो छो, तेनी आगळ आं ताप शा हिसावमा छे ? // 31 // .... पश्चादपि देहे त्वं / नूनं चालिंग्यसेऽनलैस्तप्तः // भवहेतुकर्मराशे-भश्मीभवनं प्रशस्यतरं // 32 // ___ अर्थः-पाछळथी पण खरेखर तारां शरीरने बळतो अग्निज स्पर्श करवानो के, तो पछी संसारना कारणरूपक ID कोना समूहर्नु भश्मीभूत थर्बु वधारे सारं छे. // 33 // ......... Essesseeeesereles SCSCCCORRESERSEE Jun Gin Aarad na MS