________________ Fre देवकीपत्र // 6 // // SEC8 - अर्थ:-से वननुं रक्षण करनारा वनपालकपासेथी श्रीनेमिनाथप्रभुनु आगमन सांभळीने श्रीकृष्ण आनंदसहित ]io घणा विस्तारपूर्वक प्रभुना ते समवसरणमां आव्या. // 19 // जिनदेशनां भवभय-क्लेशहरी जिनमुखान्निशम्य हरिः / जातश्रदोधर्म-ऽधिकं पुनः प्राप निजनगरी // 2 अर्थः-संसारना भय अने क्लेशने हरनारी धर्मदेशना प्रभना मुखथी सांभळीने धर्ममां अधिक श्रद्धावाळो थयोथको कृष्ण पाछो पोतानी नगरीमा आव्यो. // 20 // . अथ षष्ठपारणे षण् / मुनयस्ते पौरुषीद्वयं कृत्वा // प्रतिलिख्य वस्त्रपात्रा-णि च पात्रं यत्नतो लावा // मत्वा श्रीनेमिजिनं / जगदुर्योंजितांजलिपुटास्तेऽथ // युगलत्रयेण यामी / भिक्षाये द्वारिकापुर्या ।२।युग्म। ol अर्थः-पछी ते छए मुनिओ छने पारणे वे पोहोर दिवस चड्यावाद यतनापूर्वक वस्त्रो तथा पात्रो प्रतिले खीने, अने पात्र लैइने, // 21 // श्रीनेमिनाथ प्रभुने वांदीने हाथ जोडी विनववा लाग्या के, हे भगवन् ! अमो बबेनी वर्ण जोडीथी द्वारिकानगरीमा भिक्षा लेवा माटे जइए छीये. // 22 // युग्मं // गंतव्यमप्रम-रेवं लात्वाहतो वचनमंत्र // अभ्यचलस्ते नाना-कुलाकुला द्वारिको विधिना + 23 // 02, अधी-तमारे सावचेतीथी जखु, एवीरीतना प्रभुना बचनरूपी मंत्रने लेइने, ते मुनिओ विविध कुटुंचोथी भरेली ICCEEDSEEeeesaseties Sileeeee sunratnasur.M.S. Jun Gun Aaradha