________________ क रूपना समूहवाळा ! तुं मातापितानो भक्त थइने पण आतुं कक्षवचन केम बोले छे ? // 1 // देवकीपुत्र प्रियजीवितं मम त्वं / निदोषमलंकृतिस्तथााजीवं // प्रेमनिधिस्तीर्थ मे / स्वमेव बहु चरिम किं पुत्र. 3 // 26 // * अर्थ:-हे पुत्र ! तुं मारा प्रिय जिवनरूप छो, तेमज छेक जीवितपर्यंत दूषणरहित अलंकाररूप छो, प्रेमना निधानरूप छो, तथा सुंज मने तीर्थरूप छो, वधारे शुकहुं ? // 2 // ID भोगान् भुंजानेऽथो-त्वयि पुत्र स्वगृहसारश्रृंगारे // मन्ये पुत्रवत्तीषु / स्वं धन्य स्त्रीषु कृतकृत्यां // 3 // O अर्थ:-हे पुत्र ! मारा घरनो उत्तम शृंगारभूत एवोतुं ज्यारे हवे भौगो भोगवीश, त्यारे है पुत्रवती स्त्रीओमा मने पोताने भाग्यशाली तथा कृतार्थ मानीश. // 3 // आ तारुण्यं तस्मात् / कृत्वा कारुण्यममलमंबायां // विषयसुखं भुंक्ष्व जरा-वाप्तौ त्वं लाहि चारित्रं // ___अर्थ-पाटे मातार निर्मल करुणा लावीने यौवनवयसुधी तु विषयसुख भोगव ? अने वृद्धावस्था आयेथी। तुं चारित्र ग्रहण करजे. // 4 // इत्याकुलचित्तायाः। श्रुत्वा मातुर्वचोभरं स्थिरधीः // गजसुकुमालः कोमल-वाक्यमवादीदिति क्षिप्रं 5 अर्थ:-परीते व्याकुलहृदयवाळी पोतानी माताना वचनीनो समूह सांभळीने स्थिर बुद्धिाळा गजसुकुमाल Jun Sun Aaradhatola BBBBBBBB660688eeee I6SSSSSSSSSSSSSSS supratntisuniM.S..