Book Title: Devki Putra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 19
________________ ___ अर्थ:-हे विष्णु ! हे आर्य ! हे जनार्दन ! मने तमोए केम याद कर्यो छे ! तमारे शुं काम छ ? मने तमो तुरत देवकीपुत्र कहो ? के जेथी ते कार्य हुं करूं. // 68 // 18 // मुक्तध्यानस्तुण / विधिना सत्कृत्य यदुपतिस्तं च // लघुशुभ सहोदरं में / वितरत्वं सुरमिति प्राह // 69 अर्थ:-पछी यदुपति कृष्ण ध्यानमुक्त थइने, विधिपूर्वक ते देवनो सत्कार करीने तेने कड्यु, तमो मने एक ID मनोहर न्हानो भाइ आपो? // 69 // Joid ज्ञानोपयोगपूर्व / तमभ्यधादिति सुरोत्तमः सोऽपि // भविता सहोदरस्ते-चिरात्कनिष्टः स्फुटं सौरे 70 का अर्थ:-पछी ज्ञाननो उपयोग देइने ते उत्तम देवे पण तेमने एम का के, हे कृष्ण! प्रगट रीते थोडाज समयमा समोने न्हानो भाइ थशे.॥७॥ किंतु स तारुण्येऽपि / प्रव्रज्यां लास्यति द्रुतं विरतः॥ इति कोमलसुरवचसा / बभूव कृष्णोऽपितुष्टमनाः // ... अर्थः-परंतु ते युवावस्थामांज विरक्त थइने तुस्त दीक्षा लेशे, एवीरीतना ते देवना मधुर वचनथी श्रीकृष्ण के पण मनमो आनंदित थया.॥७१॥ बहुमानपूर्वमथ ते / सुरं विसृज्य स्वमातरं कृष्णः // कथयित्वा सुरवाक्यं / संतोषयतिस्म सपरिकरांक माSEEDEesiseESSESIDE @SSEResseeksISERE atasuri M.S. Jun Gun Aaradhi PHY

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