Book Title: Devki Putra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ अर्थः-अमो सधळा छए मुनिचाया गया. // 36 // नावहामिगर्व विशेषेण // Jo अर्थ:-अमो सघळा छए मुनिओ जूदा जूदा त्रणत्रणनी जोडीथी तमारे घेर आव्या छीये, एरीते देवकीजीनो वकीपुत्र संशय दूर करीने ते बन्ने साधुओ त्यांथी चाल्या गया. // 36 // 10 हृदि चिंतयतिस्म ततः / सा हरिणेकेन पुत्रिणी लोके // अहमस्मीति मुधैव / वहामिगर्व विशेषेण // In अर्थ:-पछी ते देवकीजी पोताना मनमा एम विचारवा लागी के, फक्त एक कृष्णवडे करीनेज हु पुत्रवाळी Timl / एवी आ दुनीयामां प्रायें करीने फोगरज अभिमानने धारण करूं छु.॥ 37 // Ko षडपि सुताः सुलसाया / रूपादिगुणेन यादृशाः संति // नान्यस्याः पुत्रा / दृश्यंते तादृशा लोके // 38 // अर्थ:-सुलसाना ते छए पुत्रो रूपआदिक गुणवडे जेवा शोभे छे, तेवा कोइ बीजी स्त्रीना पुत्रो जगतमा देखाता नथी. // 38 // तद्गत्वा पृच्छामि / श्रोनेमिजिनेंद्र मात्म संदेहं // यत्ते मुनयो नूनं / कृष्णसमभांति रूपेण // 39 // o अर्थ:-माटे हवे श्रीनेमिनाथप्रभुपासे जइने मारा मननो संशय पूछी जोड, केनके ते छए मुनिओ खरेखर रूपवढे करीने मारा कृष्णसरखाज देखाय छे. // 39 // जोवंत पत्र प्रोक्ताः। पूर्व मेऽतिमुक्तकेन षड्तनयाः / ध्यात्वेति सा समागा-जिनं च नत्वेति पप्रच्छ / SCCSESCCCCCCCCCSTS 0 pictunratnasuri M.S.. Jun Gan AaradhiFM

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