Book Title: Devki Putra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 9
________________ पला CIEC बीजं युग्म ते देवकीजीने घेर ( आहार लेवामाटे ) आव्यु // 21 // प्रतिलाभितं मनोहर- मोदकभक्तेन तदपि भावेन // देवक्या तार्तीयिक-मथ मुनियुग्ममागतं तत्र 28 अर्थ:-त्यारे देवकीजीए ते मुनि युग्मने पण भावपूर्वक प्रतिलाभ्यु, एवामां त्यां त्रीजं पण मुनियुगल आव्यु.॥ तदपि प्रतिलाभ्य मुदा / तथैव सा पृच्छतिस्म साशंकं // भो भगवंतो सुरपू:-सहशायां द्वारिकापुर्या // नान्यत्कुलानि किं पुनः पुनश्चराः पर्यटंति यन्मुन्यः // तस्याभावे मत्वा / तन्मुनियुगलमथाह ततः 30 A अर्थ:-ते मुनियुगलने पण तेवीज़ रीते हर्षथी प्रतिलाभीने देवकीजीए (मनमा) शंका लावीने पूछयु के, हे भगवन ! देवपुरीसरखी आ द्वारिकानगरीमा, // 29 // शु बीजां कुटुंबो वसतां नथी ? के जेथी मुनिओ वारंवार एकने एकज घरे भिक्षामाटे आवे छे ! त्यारे ते मुनियुगले तेणीना हृदयनो अभिप्राय जाणीने कडं के, ॥३०॥युग्म 10 निर्देषणमाहारं / संप्राप्तुं पर्यटति साधुवराः // हे हरिमातर्मधुकर-वृत्त्या नानाकुलानि किल // 3 // अर्थ:-हे कृष्णनामाता देवकीजी! निर्दोष आहार लेवामाटे उत्तम साधुओ खरेखर माधुकरी वृत्तिवडे भिन्न कुटुंबोमां विचरे छे. // 31 // .. .. ........ .... . नहोकगृहस्थकुलं / प्रविशन्ति पुनः पुनमहामुनयः // जाताभ्रांतिरियं ते / यास्माकं शृणु शुभे तत्वं // 33 // SSORSeasses EEEEX SCE athasur MS Jun Guil Antal

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