Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path Author(s): Gyansundar Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah View full book textPage 4
________________ ( 2 ) ज्ञानान्मुक्तिः " पदार्थज्ञानान्मुक्तिः " इत्यादि अनेक वचनोथी संपूर्ण खात्री बे के ज्ञानथीज परम पद मली शके बेने ज्ञान स्वरूप आत्मा बे " ज्ञानाधिकरणत्वं आत्मलक्षणं " संdire सर्व पंथी ने सर्व महापुरुषोथी एकज श्रवाजे स्वीकृतथलं बे के ज्ञान पद एज मुख्य पदार्थ बे ने तेनी पुष्टिमां दर्शनाने चारित्र बे ज्ञानविना दर्शन चारित्र न कामां ज्ञानविना बीजा पदार्थो एकमाविनाना मीमाजेवा फोगट बे जीवविनाना खाली खोखावे. शिक्काविनाना खोटा रुपीया बे प्राण प्रतिष्टाविना प्रतिमा न कामी बे. तप जप संजम क्रिया अनुष्टान प्रमार्जन प्रतिलेखनादि सकल क्रिया ज्ञान गर्जित होवाथी ज सफल गाय बे ने एटला माटे महापुरुष ज्ञान दर्शन अने चारित्र रूप मुख्य पदार्थ स्वीकाif a तत्त्वनुं यथार्थविवेचन या सूत्रमां करी बताव्यं बे साद्यंतपर्यंत वांचवाथी एटले श्रवण मनन निदिध्यासन पूर्व क आराधन करवाथी बराबर समजी शकाशे ज्ञानीनुं ज्ञान अगाध ने मनुष्यनी बुद्धि स्वरूप होय बे तो पण पुरुपार्थ करवाथी ज्ञानावर्णय कर्म क्षयोपसम थाय बे. प्रांते सर्व कर्म य वाथी आत्मा पारंगत थाय बे. अजर अमर का त्रिय बने बे माटे सकल कर्मनां ज्जघानुं अंत करवा माटे ज्ञाननी आराधना करवी एज नव्यजीवोनुं मुख्य कर्त्तव्य बे परम पवित्र कर्त्तव्यमां कटिबद्ध थई सूत्र सुधारसनुं पान करो बीजां सघलां सूत्रो क्रमे क्रमे विछेद य जसे परंतु पांचPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 60