Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 3
________________ प्रस्तावना अहो श्रागमरसिक महाशयो ! परम कृपालु नगवान् वीर वर्धमान प्रनुए सकल जीवहित कारिणीमुखवारिणी संसारनिस्तारिणीकर्म विदारिणी अधमोझारिणी मिथ्यात्व निवारिणी अनिनवाश्चर्यकारिणी हदय हारिणी घादशांगवाणी अर्ध मागधी वाणी वर्णन करी ने जे वाणी त्रणे कालमां त्रणे लोकमां अने त्रणे अवस्थामां आत्मानुं परम कल्याण करे जे जे नव्यजीवो तर्या तरे ये अने तरसे ते सघलुं वीतराग वाणीनुं महात्म्य जे. पांचमा आरामां एकवीस हजार वर्षपर्यंत वीतरागनी वाणी कायम रहेशे वाणी रूपी वीरशासन अखंम प्रवाहे चालशे अने तेमां अहिंसा जगवतीनु मुख्य स्थान श्रीदशवैकालिका सूत्र श्री शयंजव सूरी महाराजे उधृत करी प्रसिद्ध कर्यु ने जेमां '१२० ' गाथा . तेमां ज्ञान दर्शन चारित्र ए त्रण तत्व साक्षात् कार देखाय ज्ञान विना सघलू अंधारं "शानी स्वासोस्वासमे करे कर्मको ने ह” “ आत्माज्ञाननवं पापं श्रास्मज्ञानेन मुच्यते" पढमं नाणं त दया एवंचि सबसंजए "एगंजाप सोसवं जाण सर्वजाणइ सोएगं जाण" एवं खुनाणिणोसारं जनहिंसर किंचणं " शते ज्ञानान्नमुक्तिः" शब्द

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