Book Title: Comparative Study of Jainism and Buddhism
Author(s): Shitalprasad
Publisher: ZZZ Unknown
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NISM AND BUDDHISM
(4) Istopadesi say's :-- आत्मानुस्तान निस्तास्य व्यवहारबहिः स्थितेः। . जायते परमानन्दः कश्चिद्योन योगिनाः ॥४७॥ Atmánusthâna nisthasya vyvahâra bahih-sthiteh, Jayate parmânandah kaśchidya ogena yoginah. 47
“On being fixed in real self-conduct and remaining outside the practical one a kind of highest bliss is experienced by a meditator by force of concentration."
आनंदो निर्दहत्युद्धं कर्मेन्धन मनागतं । न चासौ खिद्यते योगी बहिर्दुःखे स्वचेतनः ॥४८॥ Anando nirdahat yuddham karmêndhana manâratam, Na chasau khidyate yogi bahir dukkhe șva chetanah. 48
“This bliss continuously burns groups of karmic fuels; the meditator at that time does not feel pain being inattentive to external miseries.”
(5) Tattvanusāsana says :स च मुक्तिहेतु निद्धोध्यानेयस्मादयाप्यते द्विविधोपि । तस्मादभ्यसन्तु ध्यानं सुधियः सदाप्युपास्यालस्यं ॥३३॥ एकाग्र निरोधो यः परिस्पंदेन वर्जितः। तद्ध्यानं निर्जराहेतुः संवरस्य च कारणं ॥५६॥ स्वात्मानं स्वात्मनि खन ध्धायेत्स्वस्मै स्वतोयतः । सत्कारक मयस्तस्माद् ध्यानमात्मैव निश्चयात् ॥ ७३॥ संगत्यागः कषायाणां निग्रहो व्रत धारणं । मनोऽक्षाणां जयश्चेति सामग्री ध्यान साधने ॥ ७५ ॥ स्वाध्यायात् ध्यानं मध्यास्तां ध्धानात् स्वाध्याय माननेत् । ध्यानस्वाध्यायसंपत्त्या परमात्मा प्रकासते ॥ ८१ ॥
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