________________
264
NISM AND BUDDHISM
Note. The same chapter has some verses in the end ; a few are given here :
मद्यं मांसं पलांडंच न भक्षयेयं महामुने । बोधिसत्त्वैर्महासत्वै भाषाद्भिर्जिनपुंगवैः ॥१॥ मांसानि च पलांडूश्च मद्यानि विविधानिच । गुंजनं लशुनंचैव योगी नित्यं विवर्जयेत् ॥ ५॥ लाभार्थ हन्यतेसत्वो मांसार्थ दीयते धनं । उभौतौ पापकर्माणौ पच्यते रौरवादिषु ॥९॥ हस्तिकस्ये महामेधे निर्वाणांगुलिमालिके। लंकावतारसूत्रेच मयामांसं विवर्जितम् ॥ १६ ॥ यथैव रागो मोक्षाय अंतरायकराभवेत् । तथैव मांस मद्याद्याः अतंरायकरो भवेत् ॥ २० ॥ तस्मान्न भक्षेयन्मांसं उद्धेजानकरं नृणां ।
मोक्षधर्म विरुद्धत्वदार्यणां मेष वै ध्वजः ॥ २४ ॥ Madyam mánsam palânduncha na bhaksa yeyam mahá
___mune, Bodhisattvair mahâsattvair bhasadbhir Jina pungavaih Mânsâni cha palanduscha madyâni vividhånicha, Grinjanam lastnam chaita yogi nittyam vivarjayet 5 Lâbhârtham hanyate satt vo mânsârthan diyate dhanam, Ubhautau pâpakarmânau pachyete rouravâdisu Hastikaksya mahậmeghe nirvânânguli mâlike, ' Lankâvatarâ sutre cha ma yâ mânsam vivarjitam 16 Yathaiva rago moksáya antara yakaro bharet, Tathaiva mânsa madyádyâ antara ya karo bhavet 20 Tasmanna bhaksaye n mânsamudveja nakaram nri nam, Moksadharma viruddhattvå dâryânâmesa vai dhvajah 24
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org