Book Title: Collection of Kalka Story Part 02
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१६४
श्री अज्ञात सूरिविरचिता
चोर हुइ डीलिडं चोरी करइ अन[ई] पुरोहित डीलि भाढीतु पाडणहार कलाली हुइ तेणिई नगरि अहो नागरिक लोको वनवास लिउ तउ छूटउ । बीजी परिई तिहां रहिया वणसीजीइ । किस्या भणी ! जिहां थकुं शरण जोईइ तिहां जि थकु भय ऊपजइ तर किसिउं कीजइ १ ॥ १५ ॥
नरेन्द्रकन्याः किल रूपवत्यस्तवावरोधे ननु सन्ति बहून्यः । तपःकृशां जल्लभरातिजीर्णवस्त्रां विमुश्वाशु मम स्वसारम् ॥१६॥
अहो राजन् ! ताहरी आज्ञाना पालणहार अनेक राजान अनेक व्यवहारीया प्रमुख लोक तेहनी कन्या घणीह तम्हारी आज्ञामाहि छहं । तेहनूं पाणिग्रहण करि । पुण ए महासती तपिईं करी दूबली श्लेष्मां करी भरी अतिजीर्णवखनी. पहिरिणहारि माहरी बहिनि मूंकि ॥ १६ ॥
निशम्य सूरीश्वरवाक्यमेतन्न भाषते किञ्चिदिह क्षितीशः । श्रीकालिकाचार्यवरोऽथ संघस्याग्रे स्ववृत्तान्तमवेदयत् तत् ॥ १७॥
श्रीकालिकसूरिनुं वचनं सांभलीनहं राजा गर्दैभिल क्लकु (तु) ऊतर न आपइ न बोलह । श्रीकालिकसूरि पछड़ पोसालइ आवी समग्र सघल संघ तेडाबीनइ तेह भागलि सघल वृत्तांत कहिउ ॥१७॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संघोऽपि भूपस्य सभासमक्षं, दक्षं वचोऽभाषत यन्नरेन्द्र ! |
न युज्यते ते यदिदं कुकर्म, कर्तुं प्रभो !
पासि पितेव लोकम् ॥ १८ ॥
ति बार पूठि श्रीसंघ सघलु मिली रायनी सभां गिउ । राय वीनबिउ, अहो नरेंद्र । तुं प्रजालोकनहं पितातणी परिपालनं । तुझ रद्दि ए कुकु (क) र्म करवा युक्तं नही । तुझ रहि ए अन्याय करवा युक्त नही ॥ १८ ॥
इति ब्रुवाणेsपि यथार्थमुचैः
संघे न चामुश्चदसौ महीशः । महासती तामिति तनिशम्य, कोपेन सन्धां कुरुते मुनीशः ॥ १९ ॥
श्रीसंधिइं रायनई बीनती कीधी । यथार्थ वात कही । पुण राजाईं सर्वथा न मूंकी । राजा वलतु ऊतरह न दिइ । पछs श्री[सं] धि तिहां थक आवी गुरु वीनव्या । पछइ गुरे श्रीसंघ आगलि प्रतिज्ञा कीधी ॥ १९ ॥
ये प्रत्यनीका जिनशासनस्य, संघस्य ये चाशुभवर्णवाचः । उपेक्षकोड्डाहकरा धरायां, तेषामहं यामि गतिं सदैव ||२०||
जे मनुष्य जिनशासन ऊपर वैरभार वहई महाप्रत्यनीक हुइ । अनइ जे क्ली जिनशास[न]नां अवर्णव बोलइ जे जिनशासनि उड्डाह करई तेहवा मनुष्यनई सीषा (खा )मण देउं । तेहनी गतिहं सदाइ जाउं तेहनुं निवारितुं करउं ॥२०॥ मुर्वीपतिगर्द भिलं, कोशेन पुत्रैः प्रबलं च राज्यात् ।
नोन्मूलयामीति कृतप्रतिज्ञो, विधाय वेषं ग्रहिलानुरूपम् ॥२१॥
"
माहरा जाण्यानुं प्रमाण जु ए गर्दभिल्ल राजा बेटासहित भंडारसहित अंतेउरसहित राज्य पालतु उन्मूली करी न कहियो । इसी प्रतिज्ञा श्रीसंघ आगलि कीधी । प्रतिज्ञा कीधा पूठिई श्रीकालिकसूरे गहिलानु बेस कीधु ॥२१॥
भ्रमत्यदः कर्दमलितगात्रः, सर्वत्र जल्पन् नगरीं विशाळाम् ।
श्रीगर्दभो नृपतिस्ततः किं भो ! रम्यमन्तःपुरमस्य किं वा ॥२२॥ - त्रिभिर्विशेषकम् ॥
For Private And Personal Use Only
* सीताद् यथा चन्दनातिघृष्टात् ॥ लम्पटापराधे गर्दभिक्षं भूत्वा नोत्पाटयेऽहं तदनु च कालिकाचार्य एषः - इति भावार्थः ॥ ४ युग्मम् P

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237