Book Title: Collection of Kalka Story Part 02
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab
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कालिकाचार्यकथा ।
जियसत्तू तत्य नियो, जलहि व्व न दीणभावमणुपत्तो । भदाए माहणीए, सुओं य दत्तो तर्हि वसइ ॥२॥ विप्पो वि पियइ मज्जं, रमइ य वेसासु कीलए जूयं । खुदो रुद्दो भीमो, केवलदोसालओ सो य ॥३॥ ओलग्गिाउं पयट्टो, कहमवि सो अन्नया महीनाहं । उज्जुअयाए तेण चि, दिट्ठो अइगुरुपसाएण ॥४॥ अहमेहेण वसितो, एसो विसपायवो व्व वित्थरिओ । लूटतो पगईओ, जाओ य कमेण सामंतो ॥५॥ वो भेयं दाऊणं, संगहिया तेण सयलसामंता । रज्जं पि तो गहियं, अवहत्येऊण जियसत्तुं ॥६॥
अथवा
उवयरमाणाण वि सज्जमाणाण विहडइ खलो खणद्वेण । दुद्धाइदाणओ पोसिओ वि डसइ चिय भुयंगो ॥७॥ अवयरइ निम्वियारे वि, सज्जणे दुज्जणो इयसहावो । अमयमओ वि मयंको, गसिज्जए जं विढप्पेण ॥४॥ पीणेइ सप्पणी जो य, हुयवहो दहइ तं पि हु अणज्जो । अहवा को दुजणविलसियाण जाणिज्ज सीमंतं ॥९॥ निस्सारिऊण मुक्को, आह जियसत्त वि वयइ अन्नत्य । एसो य कुणइ रज, जग्णे य जयावए बहुए ॥१०॥ तस्स य माउलओ, विहरमाणओ कहवि तत्य संपत्तो । कालगसूरी नाम, आयरिओ बहुगुणग्यविओ ॥११॥ नियधम्मेण तुट्ठो, राया गंतूण ताण पासम्मि । पुन्छइ मामग ! साहस, जण्णाणं किं फलं होह ! ॥१२॥ तो तेहिं चितियं ताव, जिणमयं अनहा न कहियन्वं । अवितहकहणे उण, कम्मबंधमेसो बहुं कुणइ ॥१३॥ तावक्खेवो जुत्तो, एत्यं ति विचितिऊण तो भणियं । धम्मस्स फलं नरवइ , सग्गापवग्ग त्ति सुपसिद्धं ॥१४॥ पुच्छामि न धम्मफलं, जण्णफलं कहसु तेण इति भणिए । पुणरवि भणइ सूरी पंथो निरयाण वि अहम्मो ॥१५॥ को तुममेयं पुच्छइ, जण्णफलं कहसु आह तह वि गुरू । अमुहाण वि कम्माणं, उदओ निरयाइ दुइजणओ ॥१६॥ एवं भणिओ वि पुणो वि पुच्छए सो निवो पयंपतो । साहिक्खेवं वयणं, तत्तो सूरी वि चिंतेइ ॥१७॥
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