Book Title: Collection of Kalka Story Part 02
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab
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२३.
श्रीरामचन्द्रसूरिविरचिता गोठा य असंखिज्जा, असंखगोश हवा निगोषो ।
इक्किमि निगोए, अर्णवनीवा एणेयन्दा ॥१५॥ गोठा असंख्याता छ । गोलो गोलो नसंख्याता न(नि)गोद छ । इकेका निगोदि सिद्धा पई अनंता जीव छ। तथा स्वरूप निगोद व्याख्या करी रहिह इंतइ गुरुं कनहि तीणई श्रद्ध ग्रामणि आपणं आयु पूछि । ई प्रिया(प्रयो)गार्थी छउँ । माहरू आयु केतलं एक छह ! गुरे उपयोग देइ इंद्र महाराज जाणी कहिउँ । अहो ब्राह्मण ! तू तां इंद्र सौधर्म देवलोकनु बिहुँ सागरोपमत" भायु छह । इसीउं सांभली रूप प्रकट कीबूं । गुरु नमस्कर्या । उपाश्रय द्वार फेरवी करी 'अमोघं देवदर्शनम् ' एह भणी एक बिंब सोम कातिनुं आप्यउं । ते भावडांनइ गछि । जिम परिवार संघमाहि महिमा जाणीइ । गुरुनी स्तुति कीर्ति करी क्षमावी करी स्वर्गि गिओ।
हिव सूरस्व(च)रि आपणू आयु प्रमाण जाणी अंत्य संलेखना करी आराधना नीपजावीनइ ईणी परि प्रवचन सिद्धांत रहई उन्नति नीपजावी करी भनेकि प्रभावना नीपजावो । अनशनी इता माराधी स्वर्गि पहुता । एहवा युगप्रधान श्रीकालिकाचार्य गणधरतणू चरित्र पवित्र इणइ पर्युषणापर्व निरंतर कहीड । एह श्रीयुगप्रधान तणई नामि करी ऋद्धि इद्धि तुष्टि पुष्टि शिव शांति मांगलिक नीपजइ । हिव श्रीसंघ रहई अस्या उत्तमः पुण्य करणीय करतां श्रीज्येष्टपर्व भाराधतां निर्विघ्न हेतु एक वर्द्धापनक मंतरंग शास्त्रनु कहीइ छ ।
नक्षत्राशि(ख)तपूरितं मरकतस्थालं विशालं नमः,
पीयूषधुतिनालिकेरकलितं चन्द्रप्रभाचन्दनम् । यापन्मेरुकरे गभस्तिकटके धत्ते परिश्यङ्गना,
तावभन्दतु धर्मकर्मनिरतः भीसंघभट्टारकः ॥१७॥ पृथ्वी रूपिणी नाय(यि)का, मेर(रु) पर्वत रूपीइ हस्ति चंद्र सूर्य वलय करी शोभायमान, मरकत मणि रत्नमय स्थालि करी, घट जू लई पहरई संझ्या राग रूपीयइ तारायण मट्ठावीस, नक्षत्र अठ्यासी, ग्रह तारां तणी कोडा नि कोडि । तेह रूपीया अर्ष (ख)ड आपे(खे) चोखा जाणिवा । पीयूषधति भणीइ, चंद्रमा रूपीउ नालिकेर चंद्र ज्योना(स्ना) चंदन जाणिवउं । श्रीसंघनइं कारणि वधामणउं करइ । एतावता अंतरंग अर्थ असिउ जाणिवओ | जां लगइ पृथ्वी, जो लगइ मेर, जो लगइ आकाश, जां चंद्र सूर्य तपयं, जां तारायण उदयवंत तां ए श्रीसंघ नांदभो वाधभो विस्तर । श्रीयुगादिनाथ प्रमष(मुख) श्रीवर्द्धमान पर्यंत चतुर्विशतिजिनेंद्र तणइ प्रसादि अनई प()डरीक प्रम(म)ख अनहं श्रीगौतमस्वामि पर्यंत जे गणधर हुआ तेहई सद्गुरुं प्रसाद अनई जषि(क्ष) गोमष(मुख) [प्रमु]ष(ख) तीर्थ कर] सेवक अधिष्ठायक, जषि(क्षिणी चक्रेस्व(श्व)री प्रम(मु)ख शासनादेवति प्रसादात् श्रीसंघनई उत्तरोत्तर ऋद्धि वृद्धि जओ अभि(म्यु)दया कल्याण मांगलिकमाला विस्तर ॥
संवत् १५१७ वर्षे मार्गसिर सुदि ९ शुक्रे , श्रीमडाहडगच्छे श्रीकमलप्रभसूरिश(श)ष्य-मुनिभासचन्द्रश्रेयः स्यात्, पठनाथ लिखितं आपहिणी ॥
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