Book Title: Collection of Kalka Story Part 02
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab
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कालिकाचार्यकथा ।
१६९ पुरोहितिइं राजा प्रसंसा करतु देखीनई मस्तकि सूल ऊपजवा लागतइ गुरु कन्हलि अई जीवानीवादिकनु वाद मांडिउ । गुरे वाद करतां निराकरिउ हराविउ । पछई मनि असूया ईर्ष्याभाव अतिहिं करइ ॥४८॥
कौटिल्यभावेन यतीन् प्रशंसन् . नरेन्द्रचित्तं विपरीतवृत्तम ।
चक्रे पुरोधा गुरुभिः स्वरूपं, शातं यतिभ्यो यदनेषणीयम् ॥४९॥ पछह ते पुरोहित कुटिलपणानई भाविइं हीयइ कूड छतइ महात्मानई प्रशंसइ । लोकनइ कहइ महात्मानइ भात पाणी असूझतां करावइ । इम करतां गुरे जाणिउं भातपाणी असूझतां हवा लागां ॥४९॥
ते दक्षिणस्यां मरहट्ठदेशे, पृथ्वीप्रतिष्ठानपुरेऽथ जग्मुः।
यत्रास्ति राजा किल सातयानः, प्रौढप्रतापी परमाईतश्च ॥५०॥ श्रीकालिकसूरे भातपाणी असूझ हुतां जाणी विहार कीधु । मरहठदेसमाहि पइठाणपुर पाटणि जिहां सालिवाहन राज्य परम जैन श्रावक राज्य करइ छइ तिहां पुहता ॥५०॥
राज्ञाऽन्यदाऽपृच्छि सभासमक्षं, प्रभो ! कदा पर्युषणा विधेया ? ।
या पश्चमी भाद्रपदस्य Yक्ले, पक्षे च तस्यां भविता सुपर्व ॥५१॥ एक वार सालिवाहन राजाई पूछिउं भगवन् ! पजूसण कहीइ कीजसिइ ! गुरे कहिउं भाद्रवहमासि अजूभआलइ पखवाडइ पांचमिइ पजूसण पडिकमवू कहिउँ छइ ॥५१॥
नृपोऽवदत् तत्र महेन्द्रपूजामहो ! भवत्यत्र मुनीन्द्र ! घने ।
मयाऽनुगम्यः स च लोकनीत्या, स्नात्रादिपूजा हि कथं भवित्री ? ॥५२॥ राजा सालिवाहन कहवा लागु, भगवन् ! आपणइ आणिइं देसि महेन्द्रपूजा पांचमिई हुइ । लोक सघलु ते पर्व करइ । अनइं मइं ते लोक व्यवहारिई ते महोत्सव करितु । पजूसणनइ पवि(वि) स्नात्र पूज मालादिक आरात्रिक करवा सूं विघन हुसिइ ॥५२॥
वत् पञ्चमीतः प्रभुणा विधेयं, षष्ठयां यथा मे जिननायपूजा । __ प्रभावना-पोषधपालनादि, पुण्यं भवेनाथ ! तव प्रसादात् ॥५३॥
भगवन् ! पसाउ करी पजूसणनूं पांचमि थकुं छढुिई करउ । जिम स्नात्रपूजा प्रभावना पौषध प्रमुख पुण्य करीय कराई ॥५३॥
राजनिदं नैव भवेत् *कदाचित् , यत् पञ्चमीरात्रिविपर्ययेण ।।
ततश्चतुर्थी क्रियतां नृपेण, विज्ञप्तमेवं गुरुणाऽनुमेने ॥५४॥ गुरु कहवा लागा, अहो राजन् | पंचमीनी रात्रि अतिक्रमी गई तु पछइ पजूसण सर्वथा न हुइ । पछई राई कहिउं तु पछइ चउथिई पजूसण करउ । पछइ गुरे ते वात मानी । सिद्धांति] माहिली वात सांभरी तेह भणी मानिउँ ॥५४॥
स्मृत्वेति चित्ते जिनवीरवाक्यं, यत् सातयानो नृपतिश्च भावी ।
श्रीकालिकार्यों मुनिपश्च तेन नृपाग्रहेणापि कृतं सुपर्व ॥५५॥ . १७ रूपये P1 * अविचलइ मेरुजूला • इति शोकः P आदर्शटिप्पण्याम् ।
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