Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha Author(s): Arunvijay Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra View full book textPage 8
________________ ( २ ) तेहथी प्रतिहत तेह, मानुं कोई नवि करे, जगमां तुमशुं रे बाद ॥२॥ विगर धोई तुज निरमली, काया कंचन वान; महि प्रस्वेद लगार, तारे तुं तेहने, जे धरे ताहरु ध्यान ॥ ३ ॥ प्र. राग गयो तुज मन थकी, तेहमां चित्र न कोय, रुधिर भामिषथी राग, गयो तुज जन्मथी दूध सहोदर होय || ४ || प्र. श्वासोच्छवास कमल समो, तुज लोकोत्तर वात; देखे न आहार-निहार, चरमचक्षु धणी, मेहषा तुज अवदात ||५|| प्र. चार अतिशय मूलथी, भोगणीश देवना कीध; कर्मखप्याथी अग्यार, चोत्रीश प्रेम अतिशया समवायांगे प्रसिद्ध || ६ || प्र जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग; पद्मविजय कहे मेह, समय प्रभु पालजो जिम थाउं अक्षय अभंग ॥७॥ थोय : आदि जिनवर राया, जास सोवन काया, मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया । जगतस्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया, केवलसिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया ॥ २. श्री अजितनाथ भगवंतनी स्तुति : जेने स्तवे सुरवरो बहु भक्ति भावे, योगीश्वरो सतत जेहनुं ध्यान ध्यावे, जेना अलौकिक गुणो न गणी शकाये, ते सेविये अजितनाथ विभु सदाये,Page Navigation
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