Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra

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Page 33
________________ थोय : (२७) भर जिनवर राया, जेहनी देवी माया, सुदर्शन नृप ताया, जास सुवर्ण काया, नंदावर्त्त पाया, देशना शुद्ध दाया, समवसरण विरचाया, इंद्र इंद्राणी गाया ||१|| १९. श्री मल्लिनाथ भगवंतनी स्तुति : जे कामधेनु सुरवृक्ष थकी वधारे, आपे सुख भविक चित्त विषाद हारे, ते मल्लिनाथ विभु बालथी ब्रह्मचारी, लेजो तमे भवथी नाथ ! मने उगारी. चत्यवंदन : मल्लिनाथ ओगणीसमा, जस मिथिला नगरी; प्रभावतीजस मावडी, टाले कर्म घयरी ॥१॥ तात श्री कुंभ नरेसरू, धनुष पच्चीशनी काय; लंछन कलश मंगलकरू, निर्मम निस्माय ॥ २ ॥ चरस पंचावन सहसनुं थे, जिनवर उत्तम आय; पद्मविजय कहे तेहने, नमतां शिवसुख थाय ॥३॥

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