Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
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इंद्रजालीयो कहेतो रे आव्यो, गणधर पद तेहने दोयो रे । अर्जुनमाळी जे घोर पापी; तेहने जिन तमे उद्धर्यो रे ॥५॥ वीरजी... चंदनवाला अडदना बाकुला; पडिलाभ्या तुमने प्रभु रे । तेहने साहूणी साची रे कीधी; शिववधु साधे भेळवी रे ॥६॥ . चरणे चंडकोशियो डंसीयो, कल्प माठमे ते गयो रे।। गुण तो तमारा प्रभु मुखथी सुणीने, भावी तुम सन्मुख रह्यो रे ॥७॥
वीरजी.... निरंजन प्रभु नाम धरावो; तो सहु ने सरिखा गणो रे। भेदभाव प्रभु दूर करीने; मुजशु रमो अकमेकशुं रे ॥८॥ वीरजी... मोडावहेला; तुमहीज तारण; हवे विलंब शा कारणे रे ।
ज्ञानतणा भवना पापमिटावो, वारी जाउं तोरा वारणे रे ॥९॥ थोय :
महावीर जिणंदा, राय सिद्धार्थ नंदा; लंछन मृगेंदा, जास पाये सोहंदा; सुर नर वर इन्द्रा, नित्य सेवा करंदा टाले भव फंदा; सुख आपे अमंदा ॥१॥
२५. श्री सीमंधर भगवाननी स्तुति :
महाविदेहमां श्री सीमंधरस्वामी; नित्य बंदु प्रभात, त्रिकरणवळी त्रियोगथी, जपुं अहर्निश जाप । भरवक्षेत्रमा हुँ रहुं, आप रहो छो विमुख, ध्यान लोहचुम्बक परे, करी दृष्टि सन्मुख ।।
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